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1 Comments

  1. सुमित सिंह

    अमित जी नमस्कार!

    बेहद जरूरी विमर्श है आपका। 300 साल की ओद्योगिक क्रांति के बाद से मानव कमोबेश हर सदी में ऐसी ही अनिश्चितता वाले पड़ाव पर आ खड़ा हुआ है। पर अपनी कमतरी छिपाने के लिए हर बार उठ खड़ा होता है और पहले से कहीं तेज रफतार से आगे निकल जाता है। एक पड़ाव आज भी लगा है। हम आप सभी अपने द्वार पर ठिठके है। नहीं पता कहां किस ओर जाना है।

    आत्मचिंतन सबसे जरूरी चीज बन गई है आज। अपने अंदर उतरने से ही राह सूझ सकती है।

    सभी सुरक्षित रहें।

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