वापसी: एक पहाड़ी ब्वारी की व्यथा
“बिना पूजा के बात नहीं बनेगी, भाई. बिलकुल नहीं बनेगी.” दीपक अपनी माँ की ओर देखते हुए सुभाष से बोला. (Wapsi Story by Yugal Joshi) सुभाष ने हैरान होकर उसकी ओर देखा. पूजा से उसका क्या मतलब... Read more
काली के बगड़ में ब्रूस ली की याद
केनिथ मेसॉन की किताब द अबोड ओफ़ स्नो में कुमायूँ के सबसे बड़े अन्वेषकों में से एक हरी राम के बारे में विस्तार से पढ़कर मेरा मन दशकों पीछे चला गया. बहुत कम लोगों को जानकारी है कि पंडित हरी रा... Read more
इंतज़ार : युगल जोशी की कहानी
बहुत भागकर वह किसी तरह समय पर बस पकड़ पाया था. (Intezaar Story by Yugal Joshi) सेमेस्टर के इग्ज़ैम के बाद दो हफ़्ते की छुट्टियाँ थीं. यह तब की बात है जब मोबाइल फ़ोन जनता जनार्दन के सपन... Read more
साझी पीड़: एक बुजुर्ग पहाड़ी विधवा का दर्द
बाहर से छन कर आती हुई धूप में एकाएक वह प्रकट हुई. बाएँ हाथ से घुटने को सहारा देते हुये और दाहिने हाथ से दरवाजा थामते हुए खुद को. मैंने उस अनजान वृद्धा को आते देखकर एक नजर गमी में बैठी दीदी क... Read more
Popular Posts
- ‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा
- पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा
- पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश
- ‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक
- उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने
- नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार
- आधुनिक युग की सबसे बड़ी बीमारी
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी
- स्याल्दे कौतिक की रंगत : फोटो निबंध
- कहानी: सूरज के डूबने से पहले
- कहानी: माँ पेड़ से ज़्यादा मज़बूत होती है
- कहानी: कलकत्ते में एक रात
- “जलवायु संकट सांस्कृतिक संकट है” अमिताव घोष
- होली में पहाड़ी आमाओं का जोश देखने लायक होता है
- पहाड़ की होली और होल्यारों की रंग भरी यादें
- नैनीताल ने मुझे मेरी डायरी के सबसे यादगार किस्से दिए
- कहानी : साहब बहुत साहसी थे
- “चांचरी” की रचनाओं के साथ कहानीकार जीवन पंत
- आज फूलदेई है
- कहानी : मोक्ष
- वीमेन ऑफ़ मुनस्यारी : महिलाओं को समर्पित फ़िल्म
- मशकबीन: विदेशी मूल का नया लोकवाद्य
- एक थी सुरेखा
- पहाड़ी जगहों पर चाय नहीं पी या मैगी नहीं खाई तो
- भाबर नि जौंला: प्रवास-पलायन का प्रभावी प्रतिरोध