खटारा मारुति में पूना से बागेश्वर – 3
(पिछले हिस्से: खटारा मारुति में पूना से बागेश्वर -1, खटारा मारुति में पूना से बागेश्वर -2) गाड़ी सड़क से उतार कर कच्चे में खड़ी की. लगा कि शायद गरम होने से बन्द हो गई. काफ़ी देर बोनट खोलकर इन्त... Read more
खटारा मारुति में पूना से बागेश्वर 2
(पिछ्ला हिस्सा: खटारा मारुति में पूना से बागेश्वर – 1) चौबे जी के ससुराल वाले मूल रूप से बागेश्वर के रहने वाले हैं और पूना में बस गए हैं. परिवार का अपना अच्छा कारोबार है. सीधे-सरल, खात... Read more
खटारा मारुति में पूना से बागेश्वर 1
यह 2007 की बात है. दिन-वार ठीक से याद नहीं. अक्टूबर का महीना था. उन दिनों रामलीला(एं) चल रही थीं. अल्मोड़ा से तीन जने दिल्ली के लिए रवाना हुए – बागेश्वर से केशव, अल्मोड़ा से रज्जन बाबू औ... Read more
उस कमरे में रामलीला का साजो सामान पड़ा रहता था. शाम के वक्त वह कमरा मोहल्ले के लड़कों के अड्डेबाजी के काम आता था. उसका नाम रामलीला क्लब पड़ गया जो कि बाद में घिसकर मात्र क्लब रह गया. लड़के श... Read more
लिखना बेशक एक कला है. विद्या है. इसमें प्रतिभा के साथ-साथ कड़े अभ्यास की भी ज़रूरत होती है. कई जानकार मानते हैं कि लेखन में नियमित अभ्यास का बड़ा ही महत्व है और यह बड़ा ही मुफ़ीद होता है. और कुछ... Read more
किस्सा गंजनाशक तेल और दो यारों का -शम्भू राणा उन दोनो की दोस्ती काफी पुरानी और गाढ़ी थी. दोनों की आदतें, स्वभाव और पसंद-नापसंद काफी मिलती थीं. कुछ लोग उन्हें पीठ पीछे उनकी हरकतों के चलते रंगा... Read more
भूतचरित -शंभू राणा न जाने क्या बात है कि आज-कल लोग भूतों की बात नहीं करते, उनकी कहानियां नहीं सुनाते. जो कि एक ज़माने में बड़ी ही आम बात हुआ करती थी. कहीं ऐसा तो नहीं कि आज आदमी इतना कमीना हो... Read more
लगातार छह दिनों तक एक हजार किलोमीटर से कुछ ज्यादा का सफर ड्राइवर के बगल में बैठने के बाद एक बात अनजाने ही समझ में आयी कि जब हम गाड़ी में होते हैं तो पैदल चलने वाले लोग निहायत ही बेवकूफ जान प... Read more
दास्तान-ए-अकबर अली उर्फ़ क़िस्सा अक्कू मियाँ
एक हुआ करते थे अकबर अली. इन हजरत के बारे में अब ये तो नहीं कह सकते कि ये अल्मोड़ा शहर की एक विभूति थे, शान थे कोई ऊंची हस्ती थे. लेकिन कुछ तो थे. एक चरित्र तो थे ही कि जिनका जिक्र आज भी प्रसं... Read more
Popular Posts
- ‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा
- पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा
- पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश
- ‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक
- उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने
- नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार
- आधुनिक युग की सबसे बड़ी बीमारी
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी
- स्याल्दे कौतिक की रंगत : फोटो निबंध
- कहानी: सूरज के डूबने से पहले
- कहानी: माँ पेड़ से ज़्यादा मज़बूत होती है
- कहानी: कलकत्ते में एक रात
- “जलवायु संकट सांस्कृतिक संकट है” अमिताव घोष
- होली में पहाड़ी आमाओं का जोश देखने लायक होता है
- पहाड़ की होली और होल्यारों की रंग भरी यादें
- नैनीताल ने मुझे मेरी डायरी के सबसे यादगार किस्से दिए
- कहानी : साहब बहुत साहसी थे
- “चांचरी” की रचनाओं के साथ कहानीकार जीवन पंत
- आज फूलदेई है
- कहानी : मोक्ष
- वीमेन ऑफ़ मुनस्यारी : महिलाओं को समर्पित फ़िल्म
- मशकबीन: विदेशी मूल का नया लोकवाद्य
- एक थी सुरेखा
- पहाड़ी जगहों पर चाय नहीं पी या मैगी नहीं खाई तो
- भाबर नि जौंला: प्रवास-पलायन का प्रभावी प्रतिरोध