घुघुती की हमारे लोकजीवन में गहरी छाप है
घुघूती का महत्व देश के अन्य भागों में कितना है कह नहीं सकता किन्तु गढ़वाल-कुमाऊँ में घुघुती की छाप सबके मन में है. चैत-बैसाख की बात हो और घुघुती की बात न हो, ऐसा नहीं हो सकता. लोक संस्कृति य... Read more
काले कव्वा : एक दिन की बादशाहत
मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले ‘घुघते’ आदि पकवान बनाकर दूसरी सुबह बच्चों के द्वारा कव्वों को खिलाये जाते हैं. उसके पीछे अनेक लोक विश्वास हैं. जिन्हें अपने मूल रूप से विकृत करके भुला दिया ग... Read more
ब्रह्मकमल और मोनाल को भले राज्य पक्षी एवं राज्य पुष्प का सम्मानजनक ओहदा मिल चुका हो, लेकिन लोकजीवन व लोकसाहित्य में प्योली, बुरांश तथा न्योली, घुघुती और कफुवा ने जो धमक दी, उससे ये लोकजीवन क... Read more
Popular Posts
- पहाड़ों में मत्स्य आखेट
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : जिंदगानी के सफर में हम भी तेरे हमसफ़र हैं
- स्वयं प्रकाश की कहानी: बलि
- सुदर्शन शाह बाड़ाहाट यानि उतरकाशी को बनाना चाहते थे राजधानी
- उत्तराखण्ड : धधकते जंगल, सुलगते सवाल
- अब्बू खाँ की बकरी : डॉ. जाकिर हुसैन
- नीचे के कपड़े : अमृता प्रीतम
- रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता
- यम और नचिकेता की कथा
- अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण
- कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब
- कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम
- ‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा
- पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा
- पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश
- ‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक
- उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने
- नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार
- आधुनिक युग की सबसे बड़ी बीमारी
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी
- स्याल्दे कौतिक की रंगत : फोटो निबंध
- कहानी: सूरज के डूबने से पहले
- कहानी: माँ पेड़ से ज़्यादा मज़बूत होती है
- कहानी: कलकत्ते में एक रात
- “जलवायु संकट सांस्कृतिक संकट है” अमिताव घोष