कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति का तुगलकी फरमान
इन दिनों उत्तराखंड में कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति अपने ऊलजलूल बयानों के कारण चर्चा में हैं. हाल ही में उनके द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा गया पत्र विवादों में रहा था जिसमें उन्होंने उत्तरा... Read more
भारतीय भाषाओं के शीर्षस्थ कथाकारों का समागम : ‘कलकत्ता कथा समारोह, 1982’ : जब भारतीय भाषाओं का नेतृत्व हिंदी करती थी -बटरोही आज सब कुछ कितना बदल गया है! आज बिना अंग्रेजी के सभी भारतीय भाषाओं... Read more
आधुनिकता को अंग्रेजों के आगमन और उनकी भाषा के साथ आये ज्ञान-विज्ञान के साथ जोड़कर देखा जाता है. कुछ हद तक इस बात में सच्चाई हो सकती है, मगर जो नया समाज भारत में बना, उसके लिए सिर्फ यूरोपीय आ... Read more
इन दिनों शानी बहुत याद आ रहे हैं. 1965 में जब अक्षर प्रकाशन से उनका उपन्यास ‘काला जल’ प्रकाशित हुआ था, तभी से लेखकों-आलोचकों के द्वारा इस ओर इशारा किया जा रहा था कि भारत के आधुनिक मध्यवर्गीय... Read more
दाड़िम के फूल – इस कहानी की एक कहानी है
मेरी कहानी ‘दाड़िम के फूल’ की भी एक मजेदार कहानी है. आनंद तब आए जब इससे पहले मेरे दोस्त बटरोही की कहानी ‘बुरांश का फूल’ पाठकों को पठने को मिले. तब यानी सन् 60 के दशक में हम नैनीताल के डीएसबी... Read more
ऐसा भी कहीं होता है?
पिछली पोस्ट में मैंने भारत के कालजयी लेखक प्रेमचंद के परिवार के साथ रहने के कारण खुद को सौभाग्यशाली व्यक्तियों में माना था. शायद यह मेरा सौभाग्य ही रहा होगा, हालाँकि मुझे नहीं मालूम कि सौभाग... Read more
इस पोस्ट को पिछली पोस्ट के क्रम में पढ़िए. पिछली पोस्ट का लिंक: पचास साल पहले इलाहाबाद में कथाकार अशोक कंडवाल के साथ: प्रेमचंद और उनके बेटे की स्मृतियां ‘नई कहानियाँ’ का सम्पादकीय कार्यालय अम... Read more
पचास साल पहले इलाहाबाद में कथाकार अशोक कंडवाल के साथ: प्रेमचंद और उनके बेटे की स्मृतियां
अपनी जिंदगी के किसी पुराने टुकड़े को एकदम जीवंत रूप में देखना कितना रोमांचकारी होता है, इसका अहसास मुझे कुछ ही देर पहले तब हुआ जब मुझे पुराने किताबों के ढेर में ‘नई कहानियाँ’ का जनवरी, 1969... Read more
डाना गैराड़ के कलबिष्ट देवता की शरण में
चरवाहे लोकदेवता कलबिष्ट की शरण में (एक लोक देवता के अंकुरण की पृष्ठभूमि)-बटरोही इतने सालों के बाद क्या उसका यह कायांतरण संभव था? कलबिष्ट की इसी परंपरा के अंश के रूप में आज से चौहत्तर साल पहल... Read more
काली कुमाऊँ योद्धाओं का क्षेत्र है, अतः यहाँ की सभी परंपराएँ शक्ति (ताकत) से जुड़ी हुई हैं. दानवों की भूमि होने के कारण संभवतः न्याय पक्ष के लिए सहज ही अपने प्राण उत्सर्ग करने की प्रवृत्ति य... Read more
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