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1 Comments

  1. डॉ चिरंजीत परमार

    ऐसी ही एक कहानी प्रेम चंद की भी है। शायद उसका शीर्षक नशा था। एक साधारण परिवार का विद्यार्थी अपने एक जमींदार परिवार के सहपाठी के घर छुट्टियों में जाता है। सहपाठी उसका परिचय जमींदार के रूप में करता है। वहाँ उसकी खूब खातिर होती है। और वह अपने के “सचमुच” का जमींदार समझने लगता है और सबको छोटा समझने लगता है।

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