रुद्रचंद, चंद शासकों में सबसे शक्तिशाली शासक के रूप में जाना जाता है. रुद्रचंद के शासन काल में ही चंद शासकों ने डोटी के शासकों से सीराकोट जीता था. रुद्रचंद अल्मोड़ा की गद्दी पर 1565 ई. में बैठा.
रुद्रचंद 1588 में मुग़ल दरबार गया था. इस समय मुग़ल बादशाह अकबर था. रुद्रचंद के मुग़ल दरबार में आने का जिक्र जहांगीर ने अपने संस्मरणों में किया है. जहांगीर ने अपने संस्मरण में लिखा है कि
लक्ष्मीचंद ( रुद्रचंद का छोटा बेटा) के पिता ने उसके पास एक अर्जी भेजी थी कि राजा टोडरमल को आज्ञा दी जाए कि वे उसे मुगल दरबार में सम्राट के सम्मुख पेश कर दें और उसी अर्जी मंजूर की गयी.
रुद्रचंद के लाहौर दरबार में पहुंचने का वर्णन फ़ारसी इतिहासकार अब्दुल कादिर बदायूंनी ने कुछ इस तरह किया है :
कुमाऊं का पहाड़ी राजा रुद्रचंद लाहौर में मुग़ल शहंशाह को खिराज पेश करने आया. वह शिवालिक के पहाड़ों की ओर से सन 1588 ई. में लाहौर पहुंचा. न उसने और न उसके पुरखों ( खुदा का कहर उन पर गिरे ) ने कभी शाहंशाह के रूबरू खड़े होकर उनसे बात करने की आशा की होगी. वह अनेक दुर्लभ वस्तुएं सम्राट को उपहार में दने के लिये लाया था. इनमें एक तिब्बती गाय ( याक ) थी. एक कस्तूरा (मृग) था. यह गर्मी के कारण बाद को सड़क पर मर गया. मैंने इसे अपनी आँखों से देखा. इसकी शकल सियार जैसी थी. इसके मुख से दो छोटे-छोटे दांत बाहर निकले थे. सर में सींगों के स्थान पर गुम्मट थे. इस जानवर के पिछले अवयव कपड़े से ढके हुये थे. इसलिए में इसका अच्छी तरह निरीक्षण नहीं कर पाया. लोग कहते हैं कि उन पहाड़ों में ऐसे लोग हैं जिनके पंख होते हैं और जो उड़ भी सकते हैं. और वे कहते हैं कि वहां एक ऐसा आम होता है जिसमें वर्ष भर फल आते रहते हैं. ईश्वर ही जानता है कि यह सच है कि नहीं.
-काफल ट्री डेस्क
यमुनादत्त वैष्णव ‘अशोक’ की किताब कुमाऊं का इतिहास के आधार पर.
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One Comment
देवेन्द्र
“…न उसने और न उसके पुरखों ( खुदा का कहर उन पर गिरे ) ने कभी शाहंशाह के रूबरू खड़े होकर उनसे बात करने की आशा की होगी…”
और आप kafaltree.com ऐसे दंभी, धर्मान्ध, मुग़ल शासक के महिमागायन को गर्व से प्रस्तुत करवा रहे हैं, आप का क्या कहना। ये आर्टिकल क्या इतना ज़रूरी है?