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4 Comments

  1. Kailash Ruwali

    Great sir old memory is always great full very hard of kumaoni Life i remember always

  2. [email protected]

    क्या सजीव चित्रण किया है आपने भाई! 75 साल की उम्र में अपने बचपन की ऐसी ख़ुद लग रही है कि फिर से प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा बन जाना चाहता हूं । आइएसा ही वातावरण तो हुआ करता था तब हमारे स्कूलों में। वो बहते सिंगाड़े को कमीज़ की आस्तीन से पोंछने की बात मन को छू गयी । ऐसा ही तो किया करते थे हम भी ।

    — शशिधर डिमरी

  3. Kailash singh garia

    आपकी यादें बता रही हैं कि आपने वही दौर जिया है,,जिसकी चर्चा आज आये दिन मेरे बौज्यू भी करते हैं,,ये बात और है कि आज उनके लड़कों के पास उनकी फसक सुनने का समय नही है,हाँ ब्वारियाँ जरूर उनकी फ़सकों को चटकारे ले ले कर सुनती हैं।
    आपकी वो लाइन दिल को छू गई जिसमें आपने बताया है कि जाड़ों में सड़क किनारे या पगडंडियों में पड़े हुए पाले से स्कूल जाते बच्चों के तलवे कट जाया करते थे,,सच में सर जी आप लोगों ने काफी अभावों में जीवन को जिया है शायद इसी कारण इतने बड़े पोस्ट को आपने शोभायमान किया,,,
    एक बात और कहूँ, क्योंकि कहने का बड़ा दिल कर रहा है,,कि आप अधिकारी भी बहुत ग्रेट रहे होंगे,,आपकी बातों से भरी इस संस्मरण में आपकी ग्रेटनेस्स के दर्शन सहज भाव से हो रहे हैं,,,
    आपको दिल से सलाम है सर जी।

  4. अभय पन्त

    श्रीमान जी, आपके संस्मरण ने वाकई में अतीत को पुनर्जीवित कर दिया। उस समय के विद्यालय अति महत्वपूर्ण सुविधाओं से भी रहित होते थे। यहां तक कि अध्यापकों की योग्यता के मामलों तक में भी। जैसा कि आपके द्वारा दिए गए उल्लेख से प्रकट हो रहा है कि अध्यापकों को यह तक न पता था कि, बच्चे स्कूल के बाद, खेतों में मां बाप के हाथ बंटाने में व्यस्त होने के कारण गृहकार्य पूरा न कर पाते थे। जब एक मानव (अध्यापक) दूसरे के (बच्चों के) कष्टों का अनुमान ही नहीं लगा पा रहा, तो विद्यालय में अनुपलब्ध भौतिक सुविधाओं का रोना, गिनती में कहां आता है? फिर भी, पंखे, कूलर, और एसी से विहीन वह सरल , परंतु प्रकृतिस्थ विद्यालय, उस कोमल उम्र में समाज के अध्ययन और उसको जीने की प्रथम पाठशाला होते थे।

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