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2 Comments

  1. अंजलि

    बहुत खूब लिखा है आपने।रही सही कसर फिल्म ने निकाल दी ठैरा और बल का मजाक बना कर।

  2. शिप्रा खात्री

    मैं एक कुमाऊनी बहू हूँ। यानी कि हिंदी भाषी हूँ, पर में अपनी ईजा यानी सास से अपनी बेटी के साथ कुमाऊनी में ही बोलने को कहती हूँ, जिससे वो अपनी जड़ों को जाने, अपनी संस्कृति को समझे। मैं हर महीने आने वाले छोटे से छोटे कुमाऊनी त्योहारों को पूरी रीति से मनाने की कोशिश करती हूँ।पर दुर्भाग्य की बात है, दिल्ली में बसे होने के कारण मेरे सास ससुर ही स्वयं अपने रीति रिवाजों को भूल से गये हैं, कई बार मैं अपनी कुमाऊनी दोस्त से पूछ कर ईजा को याद दिलाती हूँ। मैं इस बात का महत्व समझती हूँ कि एक ससंस्कृति अपनी भाषा से ही पनपती है।
    अगर मैं गलत हूँ तो मुझे माफ़ करियेगा, पर कुमाऊनी एक बोली है , भाषा नही। भाषा तो हिंदी ही है वहां भी इसी लिए स्कूलों में हिंदी ही पढ़ाई जाती है, अपनी माँ बोली को ज़िंदा रखना घर के लोगों से ही होगा, इतनी सुंदर बोली को बोलने में कैसी शर्म?

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