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6 Comments

  1. Anonymous

    Lagvag 38 saal jindagi ki jadoojahad bhool Kar, hazara ke chure wale yug main pahunchane ke liye sambhu ji ko sadhuwad

  2. suraj p. singh

    वाह, सुंंदर!

  3. Anonymous

    एक और नायाब हीरा।

  4. Kamal Goyal

    हमहूँ बहुत बार खाये रहे हो ये ” हजारे का चूरा ” ….. लिया और ले कर घर को आ गये …. शाम की चाय का टाइम फिक्स था चार बजे , ये नही कि जब मन करा बना ली , तो शाम की चाय के साथ का स्नेक्स … बिस्किट का बिस्किट और सबसे सस्ता पेट भराऊ आयटम

  5. नाज़िम अंसारी

    हज़ारा की दुकान तो बहुत बाद में खुली। मुझे अपने बचपन (1961 ) की बंसी और हरकिशन की बिस्किट फैक्ट्री की याद है जिनकी दुकान तो चौक बाज़ार में महिला अस्पताल के गेट के बगल में थी जबकि फैक्ट्री नियाज़ गंज के ढाल में थी जिसमें ब्रेड,बन,फैन,पफ ,बिस्किट आदि अन्य बेकरी के उत्पाद तैयार किए जाते थे। पांच नए पैसे में बिस्किट का चूरा बहुत अधिक मात्रा में मिल जाया करता था जिसमे हर तरह का स्वाद होता था। जिनकी यह फैक्ट्री थी वे पंजाब के विस्थापित थे और विभाजन के बाद अल्मोड़ा आए थे। दूसरे विस्थापित जिन्दर के पापा थे उनके चने भूनने की दुकान भी इसी मोहल्ले में थी और तैयार माल बेचने की दुकान महिला अस्पताल के उस समय के प्राइवेट वार्ड के गेट के बगल में थी।

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