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1 Comments

  1. Suraj P. Singh

    पहाड़ों में रहकर जितना समझ पाया उस लिहाज से पर्यटन उद्योग का जो ढांचा है वह अपने स्वरूप में बाहरी और औनपनिवेशिक है, यानी कमाई तो पहाड़ में की जाती है लेकिन उसे उठाकर प्लेंस के बड़े शहरों में पहुंचाया जाता है। स्थानीय लोगों के हिस्से टैक्सी चलाना, गाइड बनना या दुकानें चलाना जैसे सेकेंड्री लाभ वाले काम आते हैं।

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