कुमाऊं के लोकदेवताओं में छुरमल का नाम प्रथम पंक्ति के लोकदेवताओं में लिया जाता है. छुरमल कालसिण और हयूंला के पुत्र माने जाते हैं पिता-पुत्र की कथा अलग-अलग प्रकरणों के साथ पूरे कुमाऊँ में कही सुनी जाती है. माना जाता है कि जंगलों में छुरमल पशुओं की हिंसक जानवरों से रक्षा करता है. मूलरूप से कृषक होने के कारण कुमाऊँ क्षेत्र के बहुत से गावों में छुरमल के थान देखने को मिलते हैं.
(Churmal Gangolihat Pithoragarh)
कुमाऊं में ऋषि पंचमी का दिन महत्वपूर्ण माना जाता है. एक समय ऋषि पंचमी के दिन कुमाऊं भर में खूब कौतिक हुआ करते थे. छुरमल, कालसिन, मोस्टया जैसे लोक देवताओं+ के थानों के आस-पास लगने वाले इन कौतिकों में ग़जब की रंगत हुआ करती थी. समय के साथ कौतिक कम होते गये और कम होती गयी उसकी रंगत. आज भी ऐसे अनेक गांव हैं जिन्होंने अपने पुरखों की रवायत को बनाकर रखा है.
पिथौरागढ़ जिले में गंगोलीहाट के पास कण्डाराछीना में छुरमल का एक भव्य थान है. वर्षों से यहां ऋषिपंचमी के दिन कौतिक होता है. छुरमल देवता से जुड़े इस कौतिक का मुख्य आकर्षण रात को जलाई जाने वाली एक लम्बी मशाल है जिसे स्थानीय भाषा में रांख कहा जाता है. रांख 22 फीट लम्बी छिलुकों की बनती है. छुरमल के थान की धूनी से रांख के ऊपरी हिस्से को जलाया जाता है और इसे कंधे में रखकर मंदिर के चारों ओर परिक्रमा की जाती है.
(Churmal Gangolihat Pithoragarh)
बीते 30 अगस्त से पांच दिनों तक चले गंगोलीहाट के पास कण्डाराछीना में हुये छुरमल महोत्सव की तस्वीरें देखिये. इस वर्ष हुये इस महोत्सव में स्थानीय ग्रामीणों की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है यह ग्रामीणों की मेहनत का ही नतीजा है कि पांच दिन तक यह महोत्सव पूरे उत्साह के साथ मनाया गया. सभी तस्वीरें गोपू बिष्ट की फेसबुक वाल से साभार ली गयी हैं-
(Churmal Gangolihat Pithoragarh)









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One Comment
Gopu bisht
वाह ! शानदार