सुनें घुघुतिया का गीत
यूट्यूब चैनल ‘केदारनाद’ कुमाऊँ के लोक पर्व उत्तरायणी के मौके पर लाया है एक बेहतरीन लोकगीत. गीत के बोल हैं ‘ओ काले कौआ.’ गौरतलब है कि कुमाऊनी लोकसंगीत को रिक्रिएट करने... Read more
नेगीदा की वसंत नायिका
काव्य कला का सौष्ठव उसके सब कुछ कह देने में नहीं, बल्कि, अनकहे अंश में है. जैसे अपने पति का नाम न लेने वाली कोई ग्रामीण-नायिका, पति के बारे में पूछे जाने पर हल्के-से मुस्कुरा दे, और नैनो के... Read more
‘बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले’ गीत को उत्तर भारत की शादियों का राष्ट्रीय विदाई गीत कहना गलत नहीं होगा. फिल्म नीलकमल के लिए साहिर लुधयानवी के लिखे इस गीत को मोहम्मद रफ़ी न... Read more
संत राम और आनंदी देवी की जोड़ी में उत्तराखण्ड का लोक संगीत बसता है कहना बिलकुल गलत नहीं होगा. इस सुरीले दंपत्ति का ताल्लुक उत्तराखण्ड के शिल्पकार समाज की उस उपजाति से है गीत-संगीत जिनकी धमनि... Read more
नए अंदाज में सुनिये कुमाऊनी होली मोहन गिरधारी
होली के जश्न में चार चाँद लगाती है कुमाऊनी होली ‘हां, हां, हां, हां… मोहन गिरधारी… रूमानी छेड़छाड़ और चुहल भरी यह होली उत्तराखण्ड की पारंपरिक लोकप्रिय होलियों में से है. (Moh... Read more
इस बसंत गिर्दा की संगीतमय कविता का रस
कबूतरी देवी, भानुराम सुकोटी गिर्दा और हीरा सिंह राणा के सर्वकालिक लोकप्रिय गीतों को रीक्रियेट कर चुके करन जोशी के यू ट्यूब चैनल केदारनाद बसंती मौसम में गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ का र... Read more
केदारनाद की टोकरी से हरेले का एक गीत
पिछले कुछ सालों से उत्तराखण्ड के युवाओं द्वारा लोक संगीत को नए कलेवर में पेश करने का चलन देखने में आया है. इन कोशिशों में गाने को भौंडा बनाने के बजाय उनकी पहाड़ी आत्मा को बचाये-बनाये रखने के... Read more
इन मुश्किल दिनों में तीन कुमाऊनी गीत
लॉकडाउन के समय में परेशानियों से जूझ रहे लोग आपसी सहयोग से जिंदगी को थोड़ा आसान बनाने की कोशिश कर रहे हैं. जब सामान्य जनजीवन ठप है और कई अनसुलझे सवाल, तो अपना मनोबल बनाये रखने के लिए रचनात्म... Read more
चांचड़ी: उत्तराखंडी लोकसंस्कृति की रीढ़
मनुष्य का समभाव होना बुद्धत्व को प्राप्त कर लेना है. निर्वाण प्राप्त करना है, जिसमें जाति-धर्म, ऊंच-नीच, अगड़ा-पिछड़ा, महिला-पुरुष छोटा-बड़ा सवर्ण-दलित कुछ नहीं रहता, मात्र मनुष्य होना हो जा... Read more
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो पहाड़ को छोड़कर भी पहाड़ को नहीं भूलते हैं, उन्हीं में से एक है बीके सामंत. 2000 में पहाड़ छोड़कर कामकाज के सिलसिले में मुम्बई चल पड़े बीके सामंत मूल रूप से चंपावत जि... Read more