भाव राग ताल नाट्य अकादमी द्वारा आयोजित, ‘मूल लेख बादल सरकार व हिंदी अनुवाद अभिषेक गोस्वामी’ नाटक “हट्टमाला के उस पार” का सफलतापूर्वक सुन्दर मंचन किया गया, कलाकारों द्... Read more
लोक संस्कृति के आधार स्तंभ थे शिवचरण पांडे
बीते मंगलवार उत्तराखंड लोक संस्कृति के आधार स्तंभ शिवचरण पांडे का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया. शिवचरण पांडे (Shivcharan Pandey)वह नाम है जिन्होंने अल्मोड़ा की रामलीला और होली की परम्परा... Read more
लोक कथा : मनमंजरी और सियार
किसी जंगल में एक बकरा और बकरी साथ रहा करते थे. बकरी का नाम था मनमंजरी. दोनों बहुत दुखी थे, उनके दुःख का कारण था उसी जंगल में रहने वाला एक सियार. जब भी मनमंजरी बच्चों को जनम देती तो सियार उन... Read more
लोक कथा : माँ की ममता
प्यार से गोपू पुकारा जाने वाला गोपाल बहुत मिन्नतों के बाद पैदा हुई अपने माता-पिता की इकलौती संतान था. माता-पिता अपनी मनोकामना का फल भोग ही रहे थे कि गोपू के बाबू चल बसे. इजा के पास अपने पति... Read more
रंग-भरी एकादशी के साथ असल पहाड़ियों की होली शुरू
पहाड़ों में असल होली की शुरुआत एकादशी से ही होती है. दशमी और एकादशी के जोड़ के दिन गांव-गांव में चीर बांधने की परम्परा है. पहाड़ों में पैय्या की एक टहनी पर रंग-बिरंगे कपड़े बांधे जाते हैं इस... Read more
लोककथा : भाई भूखा था, मैं सोती रही
चैत्र का महीना शुरू हो गया था. सभी ब्याहताओं की तरह वह भी अपने भाई का रस्ता देखने लगी. भाई आएगा और भिटौली लाएगा. उसके आने से गांव-घर के दुःख-सुख पता चलेंगे. वह गरीब परिवार से थी. बाबू बचपन म... Read more
कल है फूलदेई
प्रकृति की गोद में पलने और बढ़ने वाले पहाड़ियों का पर्व फूलदेई है कल. पहाड़ियों का जीवन में प्रकृति का हर रंग मौजूद रहता है दुनिया इसे पहाड़ियों की लोक संस्कृति कहती है. पहाड़ियों का लोक और... Read more
लोक कथा : दिन दीदी रुको-रुको, अभी रुक जाओ
जाने कैसा भाग बदा था उस बहू का जो ऐसी दुष्ट सास मिली. बहू जितनी सीधी-सादी, निश्छल व सरल स्वभाव की थी सास उतनी ही कुटिल, कपटी. किसी रोज दिन-रात काम में खटने वाली बहू का मन हुआ कि मायके हो आए,... Read more
लोककथा : इजा! बस तीन पतली-सी रोटियाँ
बहुत पुरानी बात है. उस पहाड़ी गाँव में एक लड़की रहती थी. माँ के अलावा उसका इस दुनिया में कोई नहीं था. वह बहुत छोटी थी कि पिता चल बसे. चाचा-ताऊ थे नहीं और न भाई-बहन. माँ ने ही उसे पाल-पोसकर ब... Read more
जाखन : नवीन कुमार नैथानी की कहानी
जाखन नाम की वह नदी सौरी के लोगों को सपनों में बहती हुई दिखाई पड़ती थी. उनके सपनों के बाहर जाखन एक पथरीले रपाट के रूप में सौरी के दक्षिणी ढलानों पर ठिठके साल-वृक्षों की अनमनी पुकार को अनसुना... Read more