बड़ी पवित्र और गुणकारी है पहाड़ी हल्दी
बड़ी ही जरुरी, पवित्र और उपयोगी मानी गई हल्दी. बोल भी फूटे:कसो लै यो हलैदियो बोटि जामियो… काचो हलदी को रंग, ध्वे बेर नै जान… हल्दी के घर जावो तो हलद मोलाइए (Uses of Turmeric) द... Read more
बसंत ऋतु आई गेछ फूल बुरूंशी जंगलो पारा
ठंड से ठिठुरते पहाड़ में लकदक पड़ी बरफ पिघलती है तो जबरदस्त कुड़कुड़ाट होता है. ह्युं पड़ते बखत तो चारों तरफ से घिर रहे बादल सब दिखने वाली चोटियों से लिपट जाते. एक गुम्म सी चुप्प लग जा... Read more
मोटे चावल के साथ ही कौणी, मादिर का जौला भी खूब उबाल, भुतका के बनता है. अच्छी तरह गल जाने पर इसमें दही, छांछ मिला देते. ऐसे ही चावल को ज्यादा पानी डाल पका लेते. फिर मडुए का आटा पानी में घोल ह... Read more
भात के साथ पोषण, ताकत और ठण्डी-गर्मी की परेशानियों से बचाने को बहुत सारी पहाड़ी दालों, सब्जियों और मसालों का मेल बना. (Traditional Pulses and spices of Uttarakhand) ऐसे ही घालमेल से बनती है... Read more
पहाड़ी घी में पहाड़ी भूमि से टीपे, खोदे, तोड़े मसालों के साथ पूरे सीप सिंगार से, थाली में पसके जाते एक दूसरे के साथ ओल मिला टपुक लगा भोग लगाए गए भोज्य पदार्थ. जिनका मेल भी खासम खास होता. (Tr... Read more
मेहनत से बनती है कड़ी ठेठ पहाड़ी बड़ी
उड़द की दाल को पीस ककड़ी या भुजे की बड़ी भी बनाई जाती. सारी तारीफ उड़द की दाल की सिलबट्टे में की गई पिसाई पर होती और फिर हाथ से की गई फिंटाई सोने में सुहागे जैसा फ़ैंटी उड़द पानी में डालने प... Read more
ककड़ी खाने का असल तरीका पहाड़ियों के पास ही हुआ
अब बड़ी ककड़ी के रायते के तो कहने ही क्या. हरी ककड़ी की चोरी भी माफ़ ठेरी. पर तभी तलक जब तक बुड बाड़ों की नज़र चूकी रहे. नन्तर ककड़ी तो गई सो गई ऐसी ऐसी गालियां खाने को मिलें कि पुस्त दर पुस... Read more
दाल-भात-साग रोज ही खाये गए. पर किसके साथ क्या मेल बने इसके बहुत सारे संयोग बने. खास बात ये कि, घी तेल मसाले, बड़े नपे-तुले माप में बिना ढोल-फोक किये डाले जाते. लकड़ी की आंच भी नियंत्रित. जब... Read more
काले कौआ : ले कौवा पुलेणी, मी कें दे भल-भल धुलेणी
पूस की कुड़कुड़ा देने वाली ठंड, कितना ही ओढ़ बिछा लो, पंखी, लोई लिपटा लो कुड़कुड़ाट बनी रहती. नाक से भी पानी चूता रहता. नानतिनों की क्या कहें, ठुले जवान बुड़-बाड़ि स्वीटर, फ... Read more
दारमा घाटी के परम्परागत घर और बर्तन
दारमा इलाके में फाफ़र और उगल को भकार के साथ कुंग में भी जमा किया जाता. दारमा के दुमंजिले मकानों में नीचे की मंजिल से दुमंजिले की ओर चढ़ने वाली आखिरी पत्थर की सीढ़ी से नीचे फर्श तक... Read more