वीरेन्द्र डंगवाल : कविता और जीवन में सार्थक भरभण्ड -नवीन जोशी गरुड़ बटी छुटि मोटरा, रुकि मोटरा कोशिअघिला सीटा चान-चकोरा, पछिला सीटा जोशि हमारी गाड़ी कोसी पहुंची ही थी कि मेरे मुंह से बचपन में... Read more
लखनऊ में बर्लिंगटन चौराहे से केसरबाग को जाने वाली सड़क पर ओडियन सिनेमाघर से कुछ आगे, बाएं हाथ की तरफ कालीबाड़ी नाम का पुराना मुहल्ला है. वहां काली का पुराना मंदिर होने से यह नाम पड़ा. कालीबाड़ी... Read more
लगभग तीन दशक बाद ‘मण्डल-राजनीति’ का नया दौर शुरू हुआ है. रोचक बात यह है कि इस बार वही भारतीय जनता पार्टी इसकी जोरदार पहल कर रही है जिसकी ‘कमण्डल-राजनीति’ की काट के लिए 1990 में तत्कालीन प्रध... Read more
सन 2016 के शुरुआती महीनों में लखनऊ से छोटी लाइन की ‘नैनीताल एक्सप्रेस’ ट्रेन पूरी तरह बंद होने की खबर पढ़कर यादों का पिटारा खुला तो खुलता ही चला गया था. बचपन के दिन. हर साल 20 मई को हमें स्कू... Read more
हम उन्हें राम भाई कहते थे. “राम भाई,” मई 2011 में एक दिन मैंने उन्हें फोन किया था- “साबरी ब्रदर्स की कव्वाली करा रहे हैं, आप जरूर आएं.” “माई प्लेजर” उन्होंने कहा था. वे आए. उस कार्यक्रम में... Read more