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2 Comments

  1. सन्तोष पन्त

    बहुत सुन्दर । टिड्डी दल के कारण फसलों को बरबादी के बारे में पढ़ा था लेकिन इस एतिहासिक गीत को पढ़ने पर दर्द भी महसूस हुआ। गढ़वाली गीत का भाव हिन्दी में देकर समझने में आसानी रही. वास्तव में ‘आपदा गीत ‘ ही है यह.

  2. Gskhati

    इस समय मेरी आयु 65 पार कर चुकी है। बचपन में लगभग 10-12 वर्ष का रहा हूँगा, फसल कट चुकी थी। खाली खेतों में गाँव के अन्य बच्चों के संग जानवरों को चराने गए थे। दोपहर के बाद टिड्डियों का खेतों में आक्रमण। लोग चिल्ला चिल्ला कर उन्है भगाने का प्रयास कर रहे थे। थाली, कनिस्टर बजा बजा कर टिड्डियों को भगाया गया। पहली बार टिड्डी दल देखा था, उनके द्वारा किया जाने वाले नुकसान की हमें जरा भी भान नही था।
    आज समाचारों व आपके इस पोस्ट को पढ़ने पर बचपन की वह घटना अनायास ही स्मरण हो आया।

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