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3 Comments

  1. Gopu Bisht

    हमारे कुमाऊँ में तो पल्यो ही ज्यादा सुना था हां गढ़वाल में झोली ही कहते हैं। पर अब तो कुमाऊँ हो या गढ़वाल….कढ़ी ही सब लोग कहते हैं जो शहरों से पहाड़ गया हुआ शब्द है।

  2. deven mewari

    हमारे गांव में कुमाऊंनी में यह झोली ही कहलाती है। दाल को हम दाल ही कहते हैं और सियार को श्याळ। मूसल हमारे यहां मुशव नहीं होता, मुशळ ही रहता है।
    बैंजवाल जी हमारी टास्ट बड्स को लगातार जाग्रत कर रहे हैं, उनका भौत्तै आभार। थेच्वा तो हम बनाते-खाते ही आ रहे हैं लेकिन उनकी लिखी विधि से बनाने में स्वाद में निखार आएगा। पहाड़ से दो-मूली की आस लगाए हैं। आ जाएंगी उसी दिन बैंजवाल जी की विधि से थेच्वा बना लेंगे।

  3. कवीन्द्र तिवारी

    हम तो अभी भी झोली भात ही कहते हैं,जो बहुत हिट व्यंजन है,पकौड़ा झोली भी बनती है,मूली झोली और प्याज वाली भी।

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