हैडलाइन्स

शराब, शिकार और नोट वाला वोट मैनेजमेंट

कहते हैं चुनावों के समय आखिरी समय जिसका मैनेजमेंट सबसे अच्छा होता है वही जीतता है. भारतीय चुनाव में ‘मैनेजमेंट’ का अर्थ देश काल परिस्थिति अनुसार बदलता है कहीं ‘मैनेजमेंट’ का अर्थ सामप्रदायिक ध्रवीकरण से होता है तो कहीं डोर टू डोर केम्पेनिंग से. उत्तराखंड के चुनावों में ‘मैनेजमेंट’ का सीधा अर्थ शराब और शिकार से होता है.
(Uttarakhand Election 2022 Story)

दैनिक हिन्दुस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के समय फरवरी के शुरुआत के 10 दिन में ही इतनी शराब बिक चुकी है जितनी सामान्य स्थिति में पूरे माह में बिकती है. इससे पहले राज्य की मुख्य निर्वाचन अधिकारी सौजन्या भी बता चुकी हैं कि उत्तराखंड में 2017 के चुनाव के समय की तुलना में दोगुनी शराब व कैश पकड़ा जा चुका है. सोशियल मीडिया की ख़बरों की मानें तो चुनाव से ठीक एक दिन पहले पहाड़ी कस्बों के बाज़ार में बकरे और मुर्गे खत्म होने के दावे किये जा रहे हैं.  

चम्पावत जिले में बीते शुक्रवार के दिन 33 लाख से अधिक शराब की बिक्री हुई. खबरों के अनुसार प्रचार में लगे लोग व पार्टी के समर्थकों को उनकी सामाजिक हैसियत को देखते हुए अलग-अलग ब्रांड उपलब्ध कराए जा रहे हैं. इसमें 500 से लेकर 1500 रुपये तक की शराब शामिल है.
(Uttarakhand Election 2022 Story)

अन्य चुनावों की तरह इस चुनाव में भी प्रत्याशी एक दूसरे पर नोट बांटने के आरोप लगा रहे हैं. इस चुनाव में भी दावा किया जा रहा है कि वोटरों को लुभाने के लिये 500 से 2000 तक के नोट परिवारों के बीच बांटे गये हैं. यह दावा किया जा रहा है कि जहां पुरुषों को शराब से खरीदा जा रहा है वहीं महिलाओं को नगद पैसा देकर लुभाया जा रहा है.

पर्वतीय क्षेत्र के अतिरिक्त मैदानी क्षेत्रों में भी शराब, शिकार और नोट बांटे जाने की खबरें सोशियल मीडिया में आ रही हैं. कई विधानसभा सीटों में तो शाकाहारी मतदाताओं का ध्यान रखकर नगद पैसे बांटने के दावे किये जा रहे हैं. उत्तराखंड विधानसभा में भाग ले रही राष्ट्रीय पार्टियां और क्षेत्रीय पार्टियाँ एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं.

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से चुनावों के दौरान पहाड़ों में शराब और शिकार बांटने का प्रचलन लगातार बढ़ता हुआ दिखता है. यह दुर्भाग्य है कि जिस राज्य की नीव में शराबबंदी आन्दोलन सबसे बड़ा मुद्दा था आज उसी राज्य के लोग बोतल शराब और शिकार में अपना वोट बेच रहे हैं. 22 सालों में राज्य की हालत भी बता रही है कि दो बोतल शराब और किलो भर शिकार में अपना वोट बेचने से क्या हालत होती है.
(Uttarakhand Election 2022 Story)

-काफल ट्री फाउंडेशन

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