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3 Comments

  1. SHYAM

    स्व•हीरा सिंह राणा जी को श्रद्धांजलि व नमन

  2. जय प्रकाश

    कुमाऊँ की सांस्कृतिक धरोहर को चार चाँद लगाने के लिए आप हमेशा उत्तराखण्डियों के दिलो में रहोगे । हिरदा । नमन । विनम्र श्रधांजलि ।

  3. बीरेन्द्र सिंह बंगारी

    निश्चय ही देव भूमि ने आज एक कलम का सिपाही खो दिया । रानीखेत, अल्मोड़ा व नैनीताल में कई प्रतिभाओं को पहचान मिली, वे पुराने समय (अंग्रेज़ी शासन ) से ही चमके हुए शहर भी हैं । पर मानिला डानि के ” डढोली ” गाँव में पैदा हुए श्री हीरा सिंह राणा जी ने एक पिछड़े क्षेत्र को वो पहचान दी जिसके वो युगों तक ऋणी रहेंगे ।
    मुझे यह कहते हुए कभी भी संकोच नहीं हुआ कि मैं उनके गाँव का हूँ । जब कभी किसी पहाड़ी ने पूछा कहाँ के हो, मैंने उत्तर में कहा ” मैं प्रसिद्ध कुमाउनी गायक श्री हीरा सिंह राणा जी के गाँव का हूँ ” ।
    उनके शब्दों में जो भाव, कविता व चित्रण है वो कहीं और नहीं । शेरदा अनपढ़ व गिरदा की भाँति उनकी कविता व उनके गीत जनमानस को प्रिय हैं साथ ही प्रेरित भी करते हैं ।
    यथा –
    के नि बणनि बाता, धैरि बे हाथम हाथा ।
    एक ऋतु बसंत ऐं छा पतझड़ का बादा ।।
    लश्क कमर बाँधा , हिम्मत का साथा
    फिर भोला उजयाली होली, काँ लै रौली राता ।।

    अंत में उनके अमर गीत की दो पंक्तियाँ और साथ ही माँ मानिला देवी से प्रार्थना की वो अपनी माटी के सपूत को अपने श्रीचरणों में स्थान दे ….

    मैं छू हिरू डढोई क यौ पीड़े की गढोई
    त्यर खुटा तव लै रूं यौ पीड़े कैं बटोई
    मेरी विनती जैये मानी हम त्येरी बलाई ल्यौ ला ।
    मेरी मानिला डानि हम त्येरी बलाई ल्यौ ला ।।

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