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2 Comments

  1. देवेन मेवाड़ी

    हृदयस्पर्शी शब्दचित्र। मैंने भी 1962 में उसी एल पी इंटर कालेज से बारहवीं की परीक्षा दी थी। वह भी राजशेखर पंत जी के घर में रह कर। वहां उनके बाबूजी आदरणीय चंद्रदत्त पंत जी की स्नेहिल छांव में। मेरे ददा दीवान सिंह मेवाड़ी जी को उनका स्नेह प्राप्त था। उनके घर के खिलखिलाते फूलों की वह बहार, पेड़ों की वह हरियाली, कल-कल बहता पानी, जल- कुंडों में अठखेलियां करतीं वे मछलियां, पंतजी के हाथों बनी वे मूर्तियां और हवा में तैरती उनके संगीत की वे धुनें मेरी स्मृति में बसी मेरी अमूल्य यादें हैं।
    हम सात ताल जाते थे और वहां इलाहाबाद के किसी प्रोफेसर के कभी डूब जाने का किस्सा सुनते थे। तब लगता था, क्या-क्या स्प्न देख कर वे इलाहाबाद से आए होंगे और वहां आकर पहाड़ों की गोद में समा गए।
    अगर मैं भीमताल आया तो मैं भी आपके साथ टूटे पत्थर के वे टुकड़े खोजने में आपका हाथ बंटाऊंगा प्रिय पंत जी।
    देवेन्द्र मेवाड़ी

  2. राजशेखर

    आदरणीय देवेंद्र जी, आपका बहुत बहुत आभार।

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