काफल तोड़ने वाले लड़के और बूढी चुड़ैल की लोककथा
एक इन्दरू मोल्या था. उसके माँ बाप नहीं थे. वह गायों के साथ रहता था. एक दिन वह गाय चरा रहा था तभी उसकी इच्छा काफल खाने की हई. वह काफल के पड़ पर चढ़ गया और काफल खाने खाने लगा, तभी एक डक्... Read more
ऐसा कुछ कर जाएं यादों में बस जाएंऐसा कुछ कर जाएं यादों में खो जाएंयारा दिलदारा मेरा दिल कर दा दिल कर दा(Collage Memoir by Prbhat Upreti) बचपन से ही मेरे अंदर अशोक की तरह वीरता क्रूरता और दया... Read more
एक कव्वा था. उसकी दो सैंणियाँ थीं. एक नई जवान देखणंचाणं थी, दूसरी उतनी सुन्दर तो नहीं थी. पर होशियार सीप वाली थी. देखणंचांण जवान सेंणी को कव्वा ज्यादा भल मानता था. दोनों पत्नियों में बनती थी... Read more
ग्यांजू: एक जोशीले सरल पहाड़ी की लोककथा
वह एक तो शरीर से टेढ़ा-मेढ़ा बेढब था, दूसरा दिमाग से पैदल था. कोई भी बात उसकी समझ में देर में आती थी या आती ही नहीं थी. काम ऐसा करता कि उसके ईजा बौज्यू उससे कुछ काम कराते ही नहीं थे. उसकी ईज... Read more
Popular Posts
- बिश्नु : पहाड़ की कहानी
- उत्तराखंड की सड़कों पर बॉबी कटारिया की दादागिरी
- अल्मोड़ा के लक्ष्य सेन ने कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को दिलाया गोल्ड मेडल
- ऐसे होती है पारम्परिक कुमाऊनी शादी
- सावन के आखिरी सोमवार पर जागेश्वर धाम की तस्वीरें
- ‘कल्पेश्वर महादेव’ जहां भगवान शिव के जटा रूप की पूजा होती है
- संगज्यु और मित्ज्यु : कुमाऊं में दोस्ती की अनूठी परम्परा
- कॉमनवेल्थ गेम्स में छाई उत्तराखंड की स्नेह राणा
- आदमखोर बाघ और यात्री : पहाड़ी लोककथा
- तीसमारखां : नवीन सागर की कहानी
- पहाड़ की मत्स्य नीति
- आज वीरेन डंगवाल का जन्मदिन है
- नेटफ्लिक्स में उत्तराखंड के पारम्परिक गहने
- विद्यासागर नौटियाल की कहानी ‘जंगलात के सरोले’
- जब टार्च जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा थी
- निर्मल वर्मा की कहानी ‘परिंदे’
- हरसिल की यात्रा
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा: सारा जमाना ले के साथ चले
- नैनीताल में पहला डोसा और छुरी-काँटा
- परमात्मा का कुत्ता: सरकारी दफ्तरों का सच कहती कहानी
- रोपाई से जुड़ी परम्पराओं पर एक महत्वपूर्ण लेख
- सामाजिक सरोकारों से सरोकार रखने वाले डॉ. दीवान नगरकोटी नहीं रहे
- चालाक सियार: पहाड़ी लोककथा
- स्व. बी डी पाण्डे की आत्मकथा ‘इन द सर्विस ऑफ़ फ्री इंडिया’
- अल्मोड़े के बच्चों से जुड़ी इस ख़बर पर आपको भी नाज़ होगा