मोहनजोदड़ो की आखिरी सीढ़ी से -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं साइमन न्याय के कटघरे में खड़ा हूं प्रकृति और मनुष्य मेरी गवाही दे! मैं वहां से बोल रहा हूं जहां मोहनजोदड़ो के तालाब के आखिरी सीढ़ी है... Read more
दो बाघों की कथा -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं तुम्हें बताऊंगा नहीं बताऊंगा तो तुम डर जाओगे कि मेरी सामने वाली जेब में एक बाघ सो रहा है लेकिन तुम डरो नहीं बाघ को इस कदर ट्रेंड कर रखा है मैंने... Read more
आसमान में धान बो रहा हूँ: विद्रोही की कविता
Posted By: Sudhir Kumaron:
नई खेती -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं किसान हूँ आसमान में धान बो रहा हूँ कुछ लोग कह रहे हैं कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता मैं कहता हूँ पगले! अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है त... Read more
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