ईजा की भाषा बनाम मातृभाषा
अभी हाल ही में भारतीय संविधान को दोहरा रहा था तो अनुच्छेद 350 ‘क’ मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा देखते ही मेरे मन में वर्षों से घर कर रहा एक सवाल हिचकोले खाने लगा सवाल था कि मेरी मातृभाषा क्या... Read more
एक और दिवस और हिन्दी में बिन्दी
एक बड़ा सा हॉल, इतना बड़ा कि मेरे कल्लू-झल्लू बैल की जोड़ी के साथ हमारी तीनों भैंसे और एक थोरू समेत गाँव के लगभग आधे परिवारों के इतने ही जानवर इसमें बांधे जा सकते थे. बीच में लगी एक बैंच जिसके... Read more
बात तब की है जब मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय में दाख़िला लिया. गॉंव से गया एक लड़का जिसने दिल्ली का नाम भर सुना था अचानक गॉंव की प्राकृतिक जिंदगी छोड़कर दिल्ली की मशीनी जिंदगी में प्रवेश कर गय... Read more
Popular Posts
- “जलवायु संकट सांस्कृतिक संकट है” अमिताव घोष
- होली में पहाड़ी आमाओं का जोश देखने लायक होता है
- पहाड़ की होली और होल्यारों की रंग भरी यादें
- नैनीताल ने मुझे मेरी डायरी के सबसे यादगार किस्से दिए
- कहानी : साहब बहुत साहसी थे
- “चांचरी” की रचनाओं के साथ कहानीकार जीवन पंत
- आज फूलदेई है
- कहानी : मोक्ष
- वीमेन ऑफ़ मुनस्यारी : महिलाओं को समर्पित फ़िल्म
- मशकबीन: विदेशी मूल का नया लोकवाद्य
- एक थी सुरेखा
- पहाड़ी जगहों पर चाय नहीं पी या मैगी नहीं खाई तो
- भाबर नि जौंला: प्रवास-पलायन का प्रभावी प्रतिरोध
- बातें करके लोगों का दिल कैसे जीतें
- जंगल बचने की आस : सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश
- सोशियल मीडिया में ट्रेंड हो रहा है #SaveJageshwar
- चाय की टपरी
- माँ जगदंबा सिद्ध पीठ डोलीडाना
- इस्मत चुग़ताई की कहानी : तो मर जाओ
- कहानी: रेल की रात
- भाबर नि जौंला…
- जनजाति विकास : मध्यवर्ती तकनीक, बेहतर भी कारगर भी
- कुमाऊनी कविता की यात्रा के पड़ावों पर डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म ‘अंगवाल’
- राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) का ‘भारत रंग महोत्सव’ रामनगर में आज से
- कल्पना करने की शक्ति से सपनों को सच करो