मशकबीन के बिना जैसे उत्तराखण्ड के लोकसंगीत की कल्पना तक करना मुश्किल है. मशक्बाजा या मशकबीन के सुर और पहाड़ की वादियां एक दूसरे को पूर्णता प्रदान करते हुए लगते हैं. मशकबीन की धुन सुनते ही जो... Read more
भिटौली के महीने में गायी जाती है गोरिधना की कथा
जेठ म्हैणा जेठ होली, रंगीलो बैसाख, रंगीलो बैसाख लाड़ो म्हैणा, योछ चैतोलिया मास. बैणा वे येछ गोरी रैणा मैणा ऋतु मयाल. कुमाऊँ के जोहार अंचल में गाये जाने वाले इस गीत का भाव है— जेठ का महीना सबस... Read more
सरयू आज भी सिसकती है – कुसुमा की त्रासद लोककथा
सुसाट मन को कपोरता है. लग जाता है एक उदेख जिसके अंदर कुहरा जाती है बाली कुसुमा की ओसिल कहानी. सरयू आज भी सिसकती है. इतना तो समय बीत गया. विदित नहीं अब देवराम और सरूली दीदी जीवित होंगे भी कि... Read more
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