वाह रे! तू भी क्या किस्मत लेकर आया इस दुनियां में. पथरीले पत्थरों के बीच से तेरा ये दीदार बहुत कुछ कह जाता है, पहाड़ की इस पहाड़ सी जिन्दगी और अपने वजूद की जुत्सजू की दास्तां. पत्थरों से भी... Read more
उतरैणी के बहाने बचपन की यादें
असौज का सारा कारोबार समेटकर जाड़ों में जब सारे काम निबट जाते तो हमारी बुब (बुआ) कुछ समय के लिए हमारे घर यानि अपने मायके आती. कभी नानि बुब (छोटी बुआ) तो कभी ठुलि बुब (बड़ी बुआ). जब दोनों आ जा... Read more
प्रताप भैया यदि हमारे बीच होते तो 88 वर्ष आज के दिन पूरे करते. दस वर्ष पूर्व संसार से विदा हुए प्रताप भैया ने 78 बसन्त जिस जिन्दादिली, उत्साह एवं ऊर्जावान ढंग से बिताये, वह हर युवा के लिए ईष... Read more
भवाली, कुमाऊं क्षेत्र का प्रवेश द्वार होने के कारण देश के दूरदराज के क्षेत्रों से आने वाले परिब्राजक बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि क्षेत्रों के तीर्थाटन को जब यहां से गुजरे तो इसके आस-पास का नयनाभि... Read more
’प्राणो वा अन्नः’ अन्न ही प्राण है, यह वेदोक्त बात है. अन्न को ब्रह्म का स्वरूप भी कहा गया है, अन्न को देवता तुल्य माना गया है, जो हमारे शरीर का पोषण करता है. कुदरत ने मानव शरीर की संरचना इस... Read more
हिन्दी भाषा में जहां एक अक्षर के शब्दों का प्रयोग अधिकांशतः कारक के रूप में ने, से, को, का, के, की? में, हे! आदि में अथवा समुच्चय के रूप में दो शब्दों अथवा वाक्यांशों के संयोजन में -या का ही... Read more
सदियों पहले श्यामखेत का पूरा भूभाग एक झील था
भवाली, कुमाऊॅ की यात्रा के लिए एक मुख्य जंक्शन होने के साथ ही रामगढ़, मुक्तेश्वर, तितोली, हरतफा, निगलाट जैसी फल पट्यिों के करीब होने से फलों के खरीद केन्द्र के रूप में भी अपनी पहचान रखता है.... Read more
पहाड़ के खोईक भिड़ महज घरों के आगे की निर्जीव दीवार भर नहीं हुआ करती बल्कि यहां के पारिवारिक, सामाजिक व सांस्कृतिक संबंधों की पहचान तथा चेतना के केन्द्र थे. पहाड़ों की भौगोलिक संरचना जिस तरह... Read more
भवाली की लल्ली क़ब्र का रहस्य और पुरानी यादें
भारत रत्न पं. गोबिन्द बल्लभ पन्त की कर्मभूमि एवं उनके सुपुत्र स्व. कृष्ण चन्द्र पन्त की जन्मस्थली का गौरव हासिल करने से परोक्ष रूप से भवाली को पहचान तो अवश्य मिली लेकिन मुझे यह कहने में तनिक... Read more
कुछ यों होती थी हमारे बचपन की रामलीला
वो भी क्या दिन थे? कोई 12-13 बरस की उमर रही होगी. रामलीला हमारे गांव से 5 मील दूर भवाली में हुआ करती. भवाली की रामलीला की क्षेत्र में अपनी अलग पहचान थी. रोज- रोज तो नहीं पूरी रामलीला के दरम्... Read more
Popular Posts
- आधी आबादी का बराबरी के लिये संघर्ष
- गुदगुदाते उत्तराखंडी कार्टूनों का गुच्छा है कंचन जदली का लाटी आर्ट
- समाज में पर्यावरण के प्रति महिलाओं का दृष्टिकोण
- गोविन्द वल्लभ पन्त की कहानी ‘फटा पत्र’
- जिंदगी बनेगी बेहतर, चौकन्नी नजर तो पैदा कर
- उदय शंकर संगीत एवं नृत्य अकादमी के मंच पर ‘पहाड़ के रंग’ की अद्भुत तस्वीरें
- पहाड़ की होली और होल्यारों की रंग भरी यादें
- जब उत्तराखंड के जंगलों में भटके दयानन्द सरस्वती
- पहाड़ के गांवों में नाचने वाली ‘रफल्ला’ के जीवन की कहानी
- कठिन पद यात्रायें प्रकृति के करीब ले जाती हैं
- देहरादून में रहने वाले बारह साल के बच्चे की दूसरी किताब
- मेरी हरिद्वार यात्रा: भारतेंदु हरीशचंद्र का यात्रा-वृत्तांत
- तीर्थयात्रियों को बद्रीनाथ ले जाने वाला एक हेलीकॉप्टर जिसे सफेद चीटियां चट कर गयी
- दिल्ली से गांव लौटने की एक पुरानी याद
- हिमालय में जलविद्युत परियोजना के नाम पर नदियों-पहाड़ों का विनाश
- शिवलिंग का पूजन उत्तराखंड के इस धाम से शुरू हुआ था
- रहस्यमयी रूपकुंड से जुड़ी कहानियां
- ईश्वर के अस्तित्व पर महात्मा गांधी का अनमोल भाषण
- चटोराबाद में मोहिनी से भेंट
- थल में नदी किनारे छक्के लगाने वाली श्वेता वर्मा का बल्ला अब भारत के लिये बोलेगा
- किसानी के बूते पद्म श्री प्राप्त करने वाला एक पहाड़ी: प्रेम चंद शर्मा
- पहाड़ में राजस्व के साथ पुलिस भी संभाले पटवारी
- शेरदा अनपढ़ और नरेन्द्र सिंह नेगी की जनप्रतिनिधियों पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी
- बगुवावासा: रूपकुंड यात्रा का एक पड़ाव जहां से आगे पानी बहना भूल जाता है
- दो सौ वर्षों के इतिहास को समेटे एक पुस्तक ‘काऽरी तु कब्बि ना हाऽरि’