शैलेश मटियानी से पहली मुलाकात
यह किताब मैंने 2001 में मटियानीजी की मृत्यु के फ़ौरन बाद लिखनी शुरू की थी और इसके न जाने कितने ड्राफ्ट तैयार किये. हर बार लगता था कि मैं जो लिखना चाहता था, उसे न लिखकर कुछ और लिखने लगता था.... Read more
मटियानी का सूबेदार नैनसिंह और उसकी सूबेदारनी
मेरे लिये बड़ी कहानी या कविता वही है जिसे पढ़कर कुछ समय के लिये बस चुप रहने का मन करे. आँखों में नमी, होठों पर हल्की मुस्कान, हंसी से लाल गाल, गरम कान, लम्बी गहरी सांस, रोंगटे खड़ेकर शरीर को... Read more
आज शैलेश मटियानी जी को गए उन्नीस साल बीत गए
उनके पास बहुत सारी भाषाएँ थीं जिन्हें वे जीवन भर तराशते रहे. उनके यहाँ असंख्य ठेठ गंवई पात्र हैं तो अभिजात्य से भरपूर स्त्रियाँ भी. वे रमौल-बफौलों की कहानी को किसी अनुभवी जगरिये की सी साध के... Read more
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