उस दिन शिकार पर गया मैं पछेटिया बन कर
Posted By: Kafal Treeon:
एक दिन मुझे पछेटिया बन कर सचमुच शिकार पर जाने का मौका मिल गया. पछेटिया मतलब शिकारी के पीछे-पीछे चलने वाला आदमी. शिकारी थे नयाल मास्साब, जिन्हें शिकार मारने का बेहद शौक था. शिकार तो बस नाम भर... Read more
कुमारस्वामी और काम के वे दिन
Posted By: Girish Lohanion:
कहो देबी, कथा कहो – 45 पिछली कड़ी – कहां थे मेरे उजले दिन “हां, तो कहो देबी. फिर क्या हुआ? तुम किसी नाटक की बात कर रहे थे?” “हां तो सुनो, मैं नाटक की बात करने आला अफसर हरवंत सिंह जी के... Read more
कहां थे मेरे उजले दिन
Posted By: Kafal Treeon:
कहो देबी, कथा कहो – 44 पिछली कड़ी – तोर मोनेर कथा एकला बोलो रे सांझ ढल गई थी और अंधेरा घिरने के साथ-साथ ट्रेन से दिखाई देते गांवों और नगरों में बिजली की बत्तियां जगमगाने लगीं. शताब्दी ट... Read more
Popular Posts
- कहानी: सूरज के डूबने से पहले
- कहानी: माँ पेड़ से ज़्यादा मज़बूत होती है
- कहानी: कलकत्ते में एक रात
- “जलवायु संकट सांस्कृतिक संकट है” अमिताव घोष
- होली में पहाड़ी आमाओं का जोश देखने लायक होता है
- पहाड़ की होली और होल्यारों की रंग भरी यादें
- नैनीताल ने मुझे मेरी डायरी के सबसे यादगार किस्से दिए
- कहानी : साहब बहुत साहसी थे
- “चांचरी” की रचनाओं के साथ कहानीकार जीवन पंत
- आज फूलदेई है
- कहानी : मोक्ष
- वीमेन ऑफ़ मुनस्यारी : महिलाओं को समर्पित फ़िल्म
- मशकबीन: विदेशी मूल का नया लोकवाद्य
- एक थी सुरेखा
- पहाड़ी जगहों पर चाय नहीं पी या मैगी नहीं खाई तो
- भाबर नि जौंला: प्रवास-पलायन का प्रभावी प्रतिरोध
- बातें करके लोगों का दिल कैसे जीतें
- जंगल बचने की आस : सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश
- सोशियल मीडिया में ट्रेंड हो रहा है #SaveJageshwar
- चाय की टपरी
- माँ जगदंबा सिद्ध पीठ डोलीडाना
- इस्मत चुग़ताई की कहानी : तो मर जाओ
- कहानी: रेल की रात
- भाबर नि जौंला…
- जनजाति विकास : मध्यवर्ती तकनीक, बेहतर भी कारगर भी