रमोलिया हाउस में रंगोत्सव : कलर्स ऑफ होप
कुमाऊँ मंडल विकास निगम शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, कालाढूंगी चौराहा, हल्द्वानी के द्वितीय तल पर स्थित रमोलिया हाउस कल पूरा दिन गुलज़ार रहा. मौका था ‘काफल ट्री फाउंडेशन’ द्वारा 31 मार्च से आयोजित 4 द... Read more
रंग बातें करें और बातों से ख़ुशबू आए
‘रंग बातें करें और बातों से ख़ुश्बू आए…’ ज़िया जालंधरी की ग़ज़ल के इस मुखड़े को हक़ीक़त बनते देखना हो तो आएं ‘रमोलिया हाउस.’ यहाँ आपके लिए 10 युवा कलाकारों की शानदार पेंटिंग्स लगायी गय... Read more
लोक भाषा के शब्दों का हूबहू अनुवाद थोड़ा मुश्किल है. फिर भी कुमाऊनी भाषा के प्रचलित शब्द रमोल का हिंदी अर्थ रौनक के बहुत करीब ठहरता है, जिसमें लोक रस भी है. माहौल में यह रौनक किसी भी वजह से... Read more
‘केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय’ द्वारा आज से ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली’ में 10 दिनों की ऐपण वर्कशॉप का आयोजन किया जा रहा है. आज 13 मार्च से शुरू होने व... Read more
इस तरह सिंगापुर पहुंचा उत्तराखण्ड का ऐपण आर्ट
कुमाऊं की ऐपण आर्टिस्ट हेमलता कबडवाल ‘हिमानी’ ऐपण कला में अपने अद्भुत प्रयोगों के लिए जानी जाती हैं. हिमानी ऐपण कला के क्लासिक स्वरूप को बनाये रखते हुए नए प्रयोगों से ऐपण को लोकप्रिय बनाने क... Read more
इस दिवाली हेमलता की ऐपण थाली
हल्द्वानी से भवाली होते हुए एक पक्की सड़क श्यामखेत से गुजरते हुए रामगढ़ के लिए चली जाती है. बहुत कम शोर और ट्रैफिक वाली इस सुनसान सड़क पर श्यामखेत के चाय बागानों को पीछे छोड़ने के कुछ समय बा... Read more
हेमलता कबडवाल ‘हिमानी’ उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले में मुक्तेश्वर के एक गाँव सतोल की रहने वाली हैं. कुमाऊं के सभी बच्चों की तरह हिमानी भी ऐपण देखते हुए बड़ी हुई और जल्द ही इस पर हाथ भी आजमाने... Read more
Popular Posts
- पहाड़ ठंडो पानी, सुण कति मीठी वाणी
- 30 मई 1930 : उत्तराखण्ड के इतिहास का रक्तरंजित अध्याय
- मुल्क कुमाऊँ को ढुंगो ढुंगो होलो
- सबकी नजरें उत्तराखंड के आकाश मधवाल पर
- भारत के अलावा और कहाँ मिलता है ‘काफल’
- नैनीताल की पहली यात्रा में एक स्थानीय के सिर पर पत्थर रख गये अंग्रेज
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : लम्बी सी डगर न खले
- उत्तराखंड में वनाग्नि की समस्या पर एक जमीनी रपट
- बकरी और भेड़िये
- 1 मई और रुद्रप्रयाग का बाघ
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : जिंदगी धूप तुम घना साया
- खोज्यालि-खोज्यालि, मेरी तीलु बाखरी
- गुप्तकाल में कुमाऊं
- चाय की खेती की असीम संभावनायें हैं उत्तराखंड में
- पलायन : किसी के लिए वरदान, किसी के लिए श्राप
- कुमाऊनी लोक कथा : खाचड़ी
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : धूप सुनहरी-कहीं घनेरे साये
- इस तरह द्वाराहाट में द्वारिका नगरी न बन सकी
- क्या 1940 में शुरू हुआ थल मेला
- सूखे आटे का स्वाद
- पहाड़ की ठण्ड में चाय की चुस्की
- कुमाऊनी जागर शैली में शिव सती विवाह की कहानी
- मेघ व हिमालय चित्रावली
- क्वी त् बात होलि
- आलू, चने और रायते का यह अनुपम जादू