ट्रैफिक चालान से कैसे बचें
चालान से बचने का सबसे पहला तरीका तो यही है कि गाड़ी घर से निकाली ही न जाए. गाड़ी घर से निकलेगी तो सड़कों पर चलेगी. सड़क पर चलेगी तो ड्राइवर को अपना बचपन याद आएगा. बचपन से ही लगभग सभी आम भारत... Read more
नये ट्रैफिक नियमों के बाद चौराहे पर काबिलियत दिखाने को लालायित हैं पुलिस वाले
आज चौराहों पर बडी हलचल है. पुलिस, ट्रैफिक पुलिस और उनके सहयोगी होमगार्ड वाले मुस्तैदी से तैनात हैं. ऐसा नहीं है कि ये पहले तैनात नहीं होते थे पर अब ऐसा लगता है सरकार ने इनको परमाणु हथि... Read more
बात सन दो हज़ार पचास की
बात सन दो हज़ार पचास की है. ये वो समय था जब युवा विभिन्न वीडियो साइट्स पर डालने के लिये अपने वीडियो बनाते रहते थे,और फुर्सत मिलते ही फुलकी/पानीपूरी, मोमोज़ का ठेला लगा लेते थे. बाकी अधिकांश... Read more
लोकतंत्र में सबसे बड़ा मत ध्वनि मत है
बहस बहुत देर से चल रही थी. कोई किसी निर्णय तक नहीं पहुँच पा रहा था. प्रश्न ऐसा था जिससे पूरे मोहल्ले का भविष्य तय होना था. चर्चा वहाँ पहुँच चुकी थी जहाँ से आगे एक बंद गली थी. मोहल्ले के आधे... Read more
बहुत दिनों बाद रक्षा बंधन की छुट्टियों में भोगीलाल जी से मिलना हुआ. चर्चा चल निकली. मैंने कहा कि ये तो गज़ब है ! एक कम्पनी ने पहले फ्री सिम बांटे, फिर फ्री फोन कॉल और फ्री इंटरनेट दिया. अब स... Read more
पूँजीपुर रेलवे स्टेशन पर क्रांति एक्सप्रेस
पूँजीपुर के रेलवे स्टेशन पर क्रांति एक्सप्रेस के यात्री अपनी ट्रेन की प्रतीक्षा में खड़े थे. सभी ने पूँजीपुर के बाज़ार से मोबाइल फ़ोन खरीदे थे, जिसमें ट्रेन की वास्तविक स्थिति बताने वा... Read more
एक समय की बात है प्रभास क्षेत्र में मल्लिका नामक राज्य था, जिसकी राजधानी विराट नगर थी. यहाँ मल्लिका के पुष्प बहुतायत में होते थे. निरंतर मल्लिका के पुष्पों से सुवासित रहने के कारण ही इस राज्... Read more
जलते जंगल का वसंत
आज सुबह आँख खुली तो मन कुछ उद्विग्न था. बेसिरपैर का, पता नहीं क्या सपना देखा था रात को, कि पिताजी के स्वास्थ्य की चिंता लग गयी. उम्र के 96 वर्ष देख चुके ‘पप्पा’ के स्वास्थ्य को लेकर, बावजूद... Read more
अभी पन्द्रह दिवस पूर्व ही लघु अमावस्या बीती है. इसे चेला अमावस भी कहते हैं. आज गुरु पूर्णिमा का पावन दिन आया है. आज के दिन उन सभी आत्माओं को मन-वचन से श्रद्धा सुमन अर्पित करने का अवसर आया है... Read more
हे सहकर्मी! हे कुलीग! तुम आखिर ऐसे क्यों हो? किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ से, ऑफिस में विकिरण फैलाते. अपनी चाल, आँखों और बातों से बेधने वाली अल्फा, बीटा, गामा किरणें फेकते. (Satire by Priy Abhis... Read more
Popular Posts
- बिश्नु : पहाड़ की कहानी
- उत्तराखंड की सड़कों पर बॉबी कटारिया की दादागिरी
- अल्मोड़ा के लक्ष्य सेन ने कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को दिलाया गोल्ड मेडल
- ऐसे होती है पारम्परिक कुमाऊनी शादी
- सावन के आखिरी सोमवार पर जागेश्वर धाम की तस्वीरें
- ‘कल्पेश्वर महादेव’ जहां भगवान शिव के जटा रूप की पूजा होती है
- संगज्यु और मित्ज्यु : कुमाऊं में दोस्ती की अनूठी परम्परा
- कॉमनवेल्थ गेम्स में छाई उत्तराखंड की स्नेह राणा
- आदमखोर बाघ और यात्री : पहाड़ी लोककथा
- तीसमारखां : नवीन सागर की कहानी
- पहाड़ की मत्स्य नीति
- आज वीरेन डंगवाल का जन्मदिन है
- नेटफ्लिक्स में उत्तराखंड के पारम्परिक गहने
- विद्यासागर नौटियाल की कहानी ‘जंगलात के सरोले’
- जब टार्च जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा थी
- निर्मल वर्मा की कहानी ‘परिंदे’
- हरसिल की यात्रा
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा: सारा जमाना ले के साथ चले
- नैनीताल में पहला डोसा और छुरी-काँटा
- परमात्मा का कुत्ता: सरकारी दफ्तरों का सच कहती कहानी
- रोपाई से जुड़ी परम्पराओं पर एक महत्वपूर्ण लेख
- सामाजिक सरोकारों से सरोकार रखने वाले डॉ. दीवान नगरकोटी नहीं रहे
- चालाक सियार: पहाड़ी लोककथा
- स्व. बी डी पाण्डे की आत्मकथा ‘इन द सर्विस ऑफ़ फ्री इंडिया’
- अल्मोड़े के बच्चों से जुड़ी इस ख़बर पर आपको भी नाज़ होगा