मर्तोली के बुग्यालों में चौमास में चरने वाले घोड़े और खच्चर गुलामी भूल जाते हैं
जब हम रालम और जोहार के लिए पिथौरागढ़ से निकले तो बरसात अपने चरम पर थी और रोड जगह जगह टूटी हुई थी. नाचनी से आगे हरडिया पर हमारी जीप कीचड़ में धंस गयी जिसे निकालने की कवायत में हमारे जूते बुरी... Read more
नहर देवी में एक छोटे से बाड़े में पैतीस चालीस लोगों के बीच दब कर जैसे-तैसे रात बिताने के बाद अगले दिन भी मौसम ने कोई राहत नहीं दी. कुछ लोग जो नीचे को जाने वाले थे वह बोगड्यार के लिए निकल गए... Read more
छिपला जात में स्वर्ग जाने का रास्ता
छिपला के दक्षिणी ढाल में भैमण गुफा में सभी यात्री अँधेरे में ही जाग कर आगे की यात्रा के लिए चल पड़े. हम इस लम्बी कतार में कहीं बीच में थे. गुफा के भीतर बुग्याल की नर्म घास बिछी थी लेकिन जैसे... Read more
कनार में भगवती कोकिला के मंदिर में रात बिताने के बाद हम भुप्पी के घर मेहमान बने. कल हमने उनके फटे झोले को सिला था आज उन्होंने हमारी भूख को. यहाँ पर अपने पर्स, बेल्ट और कुछ गैर जरूरी सामान को... Read more
मलैनाथ की कथा में छिपलाकोट से भागश्री को भगा लाने का बड़ा ही रोमांचक प्रसंग आता है. मलैनाथ सीराकोट के थे और छिपला कोट यहाँ से सामने उत्तर दिशा में दिखता. दोनों के बीच में घणधूरा का विशाल और... Read more
दारमा की अम्मा के नाम बेटे का बंद लिफ़ाफ़ा
जब हम सिनला की चढ़ाई पार कर रहे थे तो हमारे एक साथी की जेब में एक लिफाफा था. यह लिफाफा गुंजी में जंगलात के एक कर्मचारी ने दिया था जिसका गाँव गो था. इस लिफ़ाफ़े में उसने अपनी बूढ़ी माँ के लिए... Read more
डेढ़ जूता और ठाणी की धार
तवाघाट से मांगती के बीच सड़क टूटी थी तो हमें तवाघाट से ठाणी धार चढ़कर चौदास होते हुए आगे बढ़ना था. ठाणी की चढ़ाई किसी भी मुसाफिर के सब्र और हिम्मत का पूरा इम्तिहान लेती है. इस धार में कुछ कि... Read more
अन्वालों के डेरे और ब्रह्मकमल का बगीचा
अंग्रेज भले हमें सालों गुलाम बना कर गए हों उनके प्रति हमारा आकर्षण कभी कम नहीं हुआ. जैसे ही हमें कोई अंग्रेज नजर आता है हम कोशिश करते हैं कि कैसी भी अंग्रेजी में उससे बात कर ही लें. एक और मज... Read more
सिनला की चढ़ाई और सात थाली भात
पंद्रह अगस्त का दिन, बचपन से ही हमारे लिए उल्लास और उत्साह का दिन. लेकिन इस बार की पंद्रह अगस्त कुछ अलग रहा. चौदह को हम कुटी से चले तो दोपहर गुजरने तक ही ज्योलिंगकोंग पंहुच पाए. रास्ते में क... Read more
कौसानी से देवगुरु का दिलचस्प सफ़र
सुबह- सुबह जब हम कौसानी से निकले तो कोई अनुमान न था कि आज का दिन कितना लम्बा होगा. कल रात हमने सहृदय मित्रों की बदौलत आलीशान मखमली ग्रेवी वाली अंडाकरी जीवन में पहली बार पेट में उतारी और बादल... Read more
Popular Posts
- अल्मोड़ा में पारंपरिक जल के स्रोतों के मध्य नगर का एकमात्र कुआँ
- कैसे करें लक्ष्य निर्धारित और कैसे उन्हें पाएं
- 80 करोड़ रुपये खर्च कर पहाड़ के हिस्से कुछ न आया : इन्वेस्टर्स समिट 2018
- रानीखेत और अल्मोड़ा की बरसों पुरानी तस्वीरें
- नानकमत्ता किताब कौतिक की रपट
- हिमालय टूट सकता है लेकिन झुक नहीं सकता
- कौसानी में माल्टा की बहार : फोटो निबंध
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : जमीं चल रही, आसमां चल रहा
- कालीमठ यात्रा वृतांत
- इस तरह से बनाए जाते हैं परंपरागत ऐपण
- हिमालय प्रेमी घुमक्कड़ों और शोधार्थियों के लिए एक जरूरी यात्रा-किताब
- चंद्रमा संग हिमालय : फोटो निबंध
- ईजू की नराई लागी, भाई की काँकुरी
- अद्भुत है बागेश्वर का यह गुफा मंदिर
- उत्तराखंड की सबसे दानवीर महिला की कहानी
- फील्ड मार्शल मानेकशॉ से सीखो सच्ची लीडरशिप
- सिलक्यारा सुरंग हादसे में हमने विज्ञान की क्षमता और सीमा को देखा और समझा
- कुणाल तुम आजाद ही हुए : श्रद्धांजलि
- इगास से जुड़ी एक कथा
- आज बूढ़ दीवाली है
- भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू, उज्यालू आलो अंधेरो भगलू
- डूबता शाम का सूरज पिथौरागढ़ से : फोटो निबंध
- जब हम असभ्य और मूर्ख थे तब प्रकृति का सम्मान करते थे
- पहाड़ियों में इन महीने ही क्यों होती है शादी
- 1852 में केदारनाथ