यह बात सभी जानते हैं कि हिंदी साहित्य का पहला संकलन फ्रेंच भाषा में गर्सा द तासी के द्वारा 1850 में तैयार किया गया था, काफी कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि कुमाऊनी लोक कथाओं का पहला सं... Read more
घाम दीदी इथकै आ, बादल भिना उथकै जा
अब ऐसे नज़ारे कम दिखाई देते हैं, मगर हमारे छुटपन में जब पहाड़ों का आकाश हर वक़्त बादलों से घिरा रहता, हम बच्चे अपने गाँव की सबसे ऊँची चोटी पर दोनों हाथ फैलाए आकाश की ओर देखकर वहाँ बैठे देवता... Read more
मां की सिखाई ज़बान भूल जाने वाला बेटा मर जाता है
खुद को अभिव्यक्त करने का सलीका मैंने अपने दौर के वरिष्ठ और चर्चित लेखक शैलेश मटियानी से सीखा. और यह सीखना अपने भावों को व्यक्त करने के लिए सटीक शब्दों के चयन की प्रक्रिया की तरह का नहीं था,... Read more
मुफ्त में लिखा गया उत्तराखण्ड का राज्यगीत
“कहाँ हो बंकिम, कहाँ हो रवीन्द्र! आओ, उत्तराखंड का राज्यगीत लिखो ये वाक्य उत्तराखंड के एक प्रगतिशील समझे जाने वाले पाक्षिक अख़बार में छपी एक न्यूज का शीर्षक है. सामान्यतः इस शीर्षक में छिपे... Read more
ठाकुर दान सिंह मालदार और पंडित गोविन्द बल्लभ पंत ने जगाई कुमाऊं में आधुनिक शिक्षा की अलख
आज जिस स्थान पर कुमाऊँ विश्वविद्यालय का मुख्य परिसर ‘डी. एस. बी.’ स्थित है, आजादी से पहले वहाँ पर ‘वैलेजली स्कूल’ था जहाँ अंग्रेजों के बच्चे पढ़ते थे. उन दिनों गढ़वाल... Read more
क्या फर्क रह गया है लघु और बड़ी पत्रिकाओं में?
लघु पत्रिका आन्दोलन की शुरुआत व्यावसायिक पत्रिकाओं को चुनौती देने के उद्देश्य से हुई थी. साठ के दशक में ‘समानांतर’ कला-माध्यमों के रूप में यह लगभग सभी कला-रूपों में एक साथ शुरू हुआ. सिनेमा,... Read more
भारतीय भाषाओं के शीर्षस्थ कथाकारों का समागम : ‘कलकत्ता कथा समारोह, 1982’ : जब भारतीय भाषाओं का नेतृत्व हिंदी करती थी -बटरोही आज सब कुछ कितना बदल गया है! आज बिना अंग्रेजी के सभी भारतीय भाषाओं... Read more
कठपतिया का श्राप
कठपतिया का श्राप चारों ओर छोटे-छोटे पत्थरों से एक गोल घेरा बनाया जाता था जिसके बीच कोई भी आदमी – किसी भी जगह का, किसी भी जाति-धर्म का, जिसका धर्म इन जंगलों की आजीविका से जुड़ा रहता, गोल घेरे... Read more
भारत की पहली लड़ाका कौम : काली-कुमाऊँ के ‘पैका’ और उड़ीसा के ‘पाइका’ योद्धा
काली-कुमाऊँ के ‘पैका’ और उड़ीसा के ‘पाइका’ योद्धा: भारत की पहली लड़ाका कौम, जो कभी हिमालय से ओड़िसा तक फैली थी -लक्ष्मण सिह बिष्ट ‘बटरोही’ हिमालय की गोद में बसे कुमाऊँ की पुरानी राजधान... Read more
आधुनिकता को अंग्रेजों के आगमन और उनकी भाषा के साथ आये ज्ञान-विज्ञान के साथ जोड़कर देखा जाता है. कुछ हद तक इस बात में सच्चाई हो सकती है, मगर जो नया समाज भारत में बना, उसके लिए सिर्फ यूरोपीय आ... Read more
Popular Posts
- ऐसा रहा पहला टनकपुर बर्ड फेस्टिवल
- नये बजट में पहाड़
- उत्तराखंड के जननायक शमशेर सिंह बिष्ट का जन्मदिन है आज
- सासु बनाए ब्वारी खाए
- संवरेगी कुमाऊं की सबसे बड़ी बाखली
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : तू भी मिला आशा के सुर में मन का ये एकतारा
- गणतंत्र दिवस परेड में उत्तराखंड की झांकी का पहला स्थान
- ‘बेडू पाको’ की धुन के साथ शुरु हुआ बीटिंग रिट्रीट समारोह
- यूं ही कोई पहाड़ी अपना घर नहीं छोड़ता
- उत्तराखण्ड का वह गाँव जहाँ सूर्योदय और सूर्यास्त एक दिन में दो बार होता है
- कहानी : पेन पाल
- पहाड़ी ऐसे मनाते हैं बंसत पंचमी
- गणतंत्र दिवस परेड में दिखेगा छोलिया नृत्य
- दो गज जमीन
- क्या सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु देहरादून में हुई
- टनकपुर-पिथौरागढ़ ऑल वैदर रोड पर बिताई दो रातें
- नेताजी को उत्तराखंडी जांबाजों पर था सबसे ज्यादा भरोसा
- एक महान सपने को साकार होते देखने की चित्र गाथा है ‘परेड ग्राउण्ड टू लैंसडाउन चौक‘
- बसंत हमारी आत्मा का गीत और मन के सुरों की वीणा है
- जोशीमठ के पहाड़
- जोशीमठ की पूरी कहानी
- न जाने पहाड़ के कितने परिवारों की हकीकत है शंभू राणा की कहानी ‘बेदखली’
- जब हिन्दी फिल्मों में पहाड़ी लोकगीतों की धुनों का इस्तेमाल होता था
- टनकपुर किताब कौथिग का दूसरा दिन
- राजा-पीलू की जोड़ी