पांच पैसे की रामलीला और वो मशाल दौड़
एक तो बचपन ऊपर से वो भी गांव का. अलमस्त सा. घर वाले गालियों से नवाजते थे, और ‘भूत’ हो चुके चाचाजी, जो भी उनके हाथ लगता रावल पिंडी एक्सप्रैस की स्पीड में दे मारते. और उनका निशाना... Read more
कहां गयी पहाड़ की चुंगी देने की परम्परा
बचपन में चुंगी मिलने अपार आनंद याद आता है. वह जीवन के सबसे सुखद पलों में हुआ करता. हम बच्चे होते थे और घर पर किसी भी बड़े चचेरे-ममेरे भाई या उसके अन्तरंग दोस्त के आने की प्रतीक्षा रहती थी. (... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन -45 पिछली क़िस्त : बद्रीदत्त कसनियाल- जिनके सान्निध्य में कब पत्रकार बना, पता ही न चला पिछली क़िस्त में आपने मेरे हल चलाने और गांव का जीवन जीने के बारे में पढ़ा. इस बार मै... Read more
नाम में क्या रखा है
नाना के पास कहानियां थीं. नानी तो हमारे कहानी सुनने की उम्र से पहले ही खुद कहानी हो गईं थीं इसलिए हमने जब कहानी को कहानी की तरह पाया तो सामने नाना थे. शायद यही वजह रही हो कि हमें नानी और कहा... Read more
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