देबी के बाज्यू आये पंतनगर
कहो देबी, कथा कहो – 25 पिछली कड़ी:कहो देबी, कथा कहो – 24, पंतनगर में दुष्यंत कुमार और वीरेन डंगवाल पंतनगर आने का फायदा यह हुआ कि अब गांव से पिताजी भी वहां आ सकते थे. असल में उन्हें चलती हुई ब... Read more
कहो देबी, कथा कहो – 24 पिछली कड़ी:कहो देबी, कथा कहो – 23, कब्बू और शेरा हां, उन्हीं दिनों की बात है. एक दिन एक साथी ने कहा, “सुना है, कोई मिस्टर त्यागी आए हैं. कुलपति से मिल कर यहां किए जा रह... Read more
कब्बू और शेरा
कहो देबी, कथा कहो – 23 पिछली कड़ी: कहो देबी, कथा कहो – 22, हवा में गूंजे गीत भला कब्बू और शेरा को कैसे भूल सकता हूं. हमारे जीवन में कबूतर पहली बार वर्षों पहले सन् 1972-73 में तब आया था, जब हम... Read more
हवा में गूंजे गीत
कहो देबी, कथा कहो – 22 (पिछली कड़ी: कहो देबी, कथा कहो – 21 वे दिन, वे लोग और उन दिनों का वह पंतनगर!) वहां सब कुछ ठीक था लेकिन इतने लोगों के होने के बावज़ूद हवा में कभी गीतों के बोल नहीं गूंजते... Read more
वे दिन, वे लोग और उन दिनों का वह पंतनगर!
कहो देबी, कथा कहो – 21 (पिछली कड़ी: कहो देबी, कथा कहो – 21 – निर्माण के दिन) वे दिन, वे लोग और उन दिनों का वह पंतनगर! किसी शांत कस्बे की तरह था वह, जहां अड़ोस-पड़ोस ही नहीं, पूरे कैम्पस क... Read more
कहो देबी, कथा कहो – 20
निर्माण के दिन वर्ष भर बाद 1970 में ‘किसान भारती’ मासिक के संपादक रमेश दत्त शर्मा के विश्वविद्यालय छोड़ देने के बाद मैं और मेरा एक साथी उसका संपादन करने लगे. कुछ समय बाद ‘किसान भारती’ के संपा... Read more
कहो देबी, कथा कहो – 19
अनुशासन के वे दिन इंटरव्यू बहुत अच्छा रहा. शैक्षिक योग्यताएं और अनुभव भी काफी अच्छा था, इसलिए कमेटी ने उसे चुन लिया. कुलपति ने इंटरव्यू के बाद उसे मिलने को बुलाया और बैठा कर समझाया कि यहां उ... Read more
कहो देबी, कथा कहो – 18
नई उड़ान खैर, दिल्ली पहुंचे और सीधे इंद्रपुरी के अपने वनरूम सेट में जाकर दम लिया. साथी कैलाश इंद्रपुरी में ही कहीं और रहने लगा था. मेरा पड़ोसी मक्का रिसर्च स्कीम का ही नया साथी एस.बी. सिंह हो... Read more
कहो देबी, कथा कहो – 17
शादी की झर-फर अप्रैल आखीर से यज्ञोपवीत और शादी की झर-फर शुरू हो गई. 4 मई को यज्ञोपवीत संस्कार किया गया. ईजा बहुत याद आई उस दिन. मां तो बचपन में ही इस दुनिया से चली गई थी. बाकी, कुछ देर पहले... Read more
कहो देबी, कथा कहो – 16
मेरा पहाड़ दिन भर मक्का के खेतों में या प्रयोगशाला में और कभी-कभार साहित्य की दुनिया में, यही दिनचर्या बन गई थी. पहाड़ शिद्दत से याद आता था. घर की नराई लगती थी. मन गुनगुनाता ही रहता था- पंछी ह... Read more
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