उत्तराखण्ड में सिक्कों की छपाई का इतिहास
उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल का श्रीनगर शहर मध्यकाल से ही सिक्कों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध रहा था. उस समय इन सिक्कों को ‘टिमाशास’ कहा जाता था. जब-जब नेपाल या लद्दाख़ के रास्ते तिब्बत के साथ ह... Read more
माधो सिंह भण्डारी उत्तराखण्ड के मध्यकालीन इतिहास के वीर योद्धा हैं. माधो सिंह भण्डारी के शौर्य व पराक्रम के किस्से आज भी कहे-सुने जाते हैं. माधो सिंह भण्डारी का जन्म सत्रहवीं शताब्दी के अंत... Read more
चंद राजाओं के शासनकाल में 36 तरह के राजकर वसूले जाते थे, जिन्हें छत्तीसी कहा जाता था. थातवान परगनाधिकारी— सीरदार या सिकदार के मार्फत कर को राजकोष में जमा करते थे. उपज का छठा भाग ही कर में लि... Read more
डीडीहाट में सीराकोट का किला
सीराकोट का किला उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल के पिथौरागढ़ जिले के डीडीहाट में है. सीराकोट का किला 800 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना है. इस किले का निर्माण मल्ल राजाओं द्वारा किया गया बताया जाता है. किल... Read more
अस्कोट में आज भी मौजूद है पाल शासकों का महल
उत्तराखण्ड के शासकों में से ही रहे हैं पाल शासक. पाल वंश उत्तराखण्ड की कत्यूरी वंश परंपरा की ही एक शाखा को कहा जाता है. पाल वंश की स्थापना के विषय में माना जाता है कि कत्यूरी शासन अपने विघटन... Read more
पंडित नैनसिंह रावत : घुमन्तू चरवाहे से महापंडित तक
मुनस्यारी से शुरू होने वाली जोहार घाटी के कोई दर्ज़नभर गाँवों में रहने वाले अर्द्ध-घुमन्तू, पशुचारक, व्यापारी शौका समुदाय के लोग शताब्दियों से तिब्बत के साथ व्यापार करते रहे थे. इसी जोहार घाट... Read more
उत्तराखण्ड के बौद्ध स्थविर
उत्तराखंड का इतिहास भाग – 8 गंगा और रामगंगा तक फैली भाबर की उत्तरी सीमा पर फैली शिवालिक की निचली शाखा का प्राचीन नाम मयूरपर्वत या मोरगिरी था. गंगाजी के पूर्वी तट से चंडीघाट होकर लक्ष्मणझूला... Read more
मौर्यकाल के दौरान उत्तराखण्ड की स्थिति
उत्तराखंड का इतिहास भाग – 7 मौर्यकाल के साहित्यिक और पुरातत्विक स्त्रोत मिल जाने के कारण वर्त्तमान उत्तराखण्ड क्षेत्र का एक स्पष्ट इतिहास सामने आता है. मौर्यकाल के दौरान वर्तमान उत्तराखण्ड क... Read more
कुमाऊँ परिषद के शुरुआती वर्ष
1916 से 1926 तक कुमाऊँ परिषद का इतिहास ही बड़ी सीमा तक उत्तराखण्ड में स्थानीय आन्दोलनों तथा राष्ट्रीय संग्राम का इतिहास भी है. कुमाऊँ परिषद सामान्य समाज सुधार के उद्देश्यों वाला संगठन न होकर... Read more
उत्तराखण्ड में हेनरी रैमजे का युग (1856-1884) ब्रिटिश सत्ता के शक्तिशाली होने का काल था. औपनिवेशिक शिक्षा का प्रारम्भ हुआ और राष्ट्रीय पुनर्जागरण का आलोक यहाँ पहुँचने लगा जो सदी के अंत तक ज्... Read more
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