मां नंदादेवी जितना अपनी करुणा और ममता के लिये जानी जाती हैं उतना ही अपने क्रोध के लिये भी विख्यात हैं. मां नंदा के क्रोध को लेकर कुमाऊं गढ़वाल अंचल में अनेक किवदंती लोकप्रिय हैं. बागेश्वर में... Read more
जागेश्वर : बारह ज्योतिर्लिंगों का समूह जागेश्वर एक हिन्दू धार्मिक स्थान है जो अल्मोड़ा शहर से 37 किमी की दूरी पर है. समुद्र तल से 1,870 मी की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर समूह में कत्यूरीकाल, उत्त... Read more
लैंसडाउन : गढ़वाल रायफल्स का गौरवशाली केंद्र
लैंसडाउन उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल का एक पौड़ी जिले का एक खूबसूरत पहाड़ी कस्बा है. 2001 की जनगणना के आधार पर लैंसडाउन की आबादी सात हजार से कुछ ज्यादा थी. कालीडांडा पहाड़ी की ढलान पर बसे लैंसडाउन... Read more
हमें लापरवाही पर रोक लगाओ, वनाग्नि से जीव जंतु बचाओ की पहल शुरू करनी चाहिए
हर साल वनाग्नि के कारण उत्तराखंड राज्य की बहुमूल्य सम्पति, इसकी धरोहर जल कर नष्ट हो रहे हैं. हर साल हजारों हैक्टेयर जंगल वनाग्नि में जल कर राख हो रहे हैं. इस साल राज्य मे लगभग 1400 वनाग्नि क... Read more
ऊखीमठ गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले का एक छोटा सा क़स्बा है. ऊखीमठ मन्दाकिनी नदी के तट पर बसा है. यह रुद्रप्रयाग चौपटा मार्ग पर रुद्रप्रयाग से 40 किमी की दूरी पर बसा है. ऊखीमठ में पौराणिक का... Read more
अल्मोड़ा शहर की सरहद कर्बला से शुरू होती है कर्बला एक तिराहा है, जहां कुछ दुकानें हैं,वहीं कहीं एक जगह कैरम बोर्ड पर दोपहर बाद से हाथ आजमाते युवा है, जो शाम होते-होते कथित जोश से लबरेज हो जा... Read more
चंद शासकों ने अपनी खस प्रजा को नियंत्रित करने हेतु हिमांचल से योद्धा बुलाये थे. हिमांचल से बुलाये इन योद्धाओं को चंद शासकों ने अपनी सेना में सैनिक और ऊंचे पदों पर रखा. कुमाऊं में कांगड़ा और अ... Read more
उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाके को ध्यान से देखा जाय तो मालूम पड़ता है कि मनुष्य और प्रकृति के सम्बन्ध पिछले करीब दो सौ बरसों में बहुत बिगड़े हैं और इन्हें बिगाड़ने का काम केवल मनुष्य ने किया है. (Ut... Read more
देखिये कैसे उत्तराखंड के लोगों के वैवाहिक जीवन का हिस्सा बना मैती आंदोलन
उत्तराखंड में पर्यावरण से लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ने वाले एक आंदोलन का नाम है मैती आंदोलन. मैती आंदोलन Maiti Movement नाम से बने अपने फेसबुक पेज पर आन्दोलन के संबंध में लिखा गया है कि स... Read more
भीमताल और टूट चुके पत्थर का दर्द
शायद 69-70 के दशक की बात होगी, मैं तब भीमताल के एल. पी. इंटर कॉलेज में आठवीं या नवीं का छात्र रहा होउंगा. जून के आख़िरी सप्ताह या फिर जुलाई की शुरुवात थी. शाम के वक्त अचानक एक खबर सुनी, बाज़ार... Read more
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