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4 Comments

  1. Anonymous

    बहुत अच्छा और सच। कुछ-कुछ राग दरबारी की झलक है लेखन में । लेकिन पूरी तरह से मूल। प्रभाव पूर्ण और उस मनहूसियत, निराशा का सच्चा बयान जो इन छोटे कस्बों में मौजूद है। लिखते रहें।

  2. Usha Binjola

    बहुत अच्छा और सच। कुछ-कुछ राग दरबारी की झलक है लेखन में । लेकिन पूरी तरह से मूल। प्रभाव पूर्ण और उस मनहूसियत, निराशा का सच्चा बयान जो इन छोटे कस्बों में मौजूद है। लिखते रहें।

  3. Anonymous

    मेरा मन भी लम्बे अरसे तक क़स्बों और दरमियानी शहरों की परिधि पर झूलता रहा है। लगता है मेरी चेतना का कोई हिस्सा अब भी वहीं अटका है। अरविन्द के इस संक्षिप्त आलेख से मानवीय आसक्ति, चीज़ों की नापायदारी और बहुत से भूमिगत संवेगों का जहान खुलता मालूम होता है। ज़बान और बयान दोनों ऐतबार से उम्दा तहरीर।

  4. असद ज़ैदी

    मेरा मन भी लम्बे अरसे तक क़स्बों और दरमियानी शहरों की परिधि पर झूलता रहा है। लगता है मेरी चेतना का कोई हिस्सा अब भी वहीं अटका है। अरविन्द के इस संक्षिप्त आलेख से मानवीय आसक्ति, चीज़ों की नापायदारी और बहुत से भूमिगत संवेगों का जहान खुलता मालूम होता है। ज़बान और बयान दोनों ऐतबार से उम्दा तहरीर।

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