अमेरिका के मशहूर यात्री और ब्रॉडकास्टर जैक्सन थॉमस ने 1926 की अपनी
मसूरी यात्रा के बाद एक जगह लिखा है: “मसूरी में एक होटल है जहाँ भोर होने से ठीक पहले बाकायदा घंटी बजाई जाती है ताकि पता लग जाय कि धार्मिक लोगों के प्रार्थना करने का और पापियों के अपने बिस्तरों में चले का जाने समय हो गया है.” (Savoy Hotel Mussoorie) जैक्सन थॉमस मसूरी के विख्यात सेवॉय होटल की बात कर रहे थे. 1895 के आसपास लखनऊ के रहने वाली आयरिश मूल के सेसिल डी. लिंकन नाम के एक बैरिस्टर ने रेवरेंड मैडॉक्स मसूरी स्कूल की एस्टेट को खरीद कर अगले पांच छः सालों में वहां यह आलीशान होटल तैयार बनवाया था. 1902 में यह होटल बन कर तैयार हुआ. 11 एकड़ में बना यह आलीशान होटल यह उस समय तक उत्तर भारत में बने सबसे शानदार होटलों शिमला के द सेसिल और लखनऊ के कार्लटन को टक्कर देता था. शिमला उस समय तक भारत के मैदानों की गर्मी से आजिज़ आ चुके अँगरेज़ अफसरों के लिए गर्मियों की एक बड़ी ऐशगाह में तब्दील हो चुका था.
(Savoy Hotel Mussoorie)

इन रईस अंग्रेजों की सेवा के लिए देवदार के घने पेड़ों के बीच बनाए गए इस होटल में निर्माण कार्य किस तरह हुआ इसकी बानगी रस्किन बांड के लेखन में मिलती है – “ तमाम भारी चीज़ें जिनमें निर्माण सामग्री शामिल थी उस ऊंचाई तक बैलगाड़ियों में लाद कर लाई गयी. भारी विक्टोरियाई और एडवार्डीयन फर्नीचर, कई सारे ग्रैंड पियानो, बिलियर्ड्स की मेजें, शराब के पीपे और शैम्पेन की क्रेटें – यह सब इस शानदार होटल में इस्तेमाल होने वाली चीज़ें थीं जिसने सिंगापुर के द रैफल्स और टोक्यो के द इम्पीरियल के बराबर शोहरत हासिल होनी थी और इस सब को धीमी रफ़्तार वाली बैलगाड़ियां खींच कर वहां ले गईं.”
(Savoy Hotel Mussoorie) मसूरी में आने वालों में कुलीन अग्रेजों के अलावा आसपास के इलाकों से शोधार्थी और राजे-रजवाड़ों के लोग शामिल थे. आज तक सेवॉय में आ चुके विशिष्ट अतिथियों में वेल्स की राजकुमारी, दलाई लामा, जवाहरलाल नेहरू, मोतीलाल नेहरू, महात्मा गांधी, नोबेल विजेता पर्ल एस. बक और अनेक राष्ट्राध्यक्षों जैसी विभूतियाँ शामिल रही हैं. सेवॉय उस समय अमीरी और राजसी ठाठ का बहुत विख्यात अड्डा बन गया था. यहाँ की दावतें रात-रात चला करती थीं और बहुत दिलचस्प बात यह है कि यहाँ के स्टाफ में आंशिक रूप से अंधा एक वेटर भी था जिसका काम था हर सुबह चार बजे घंटी बजाना ताकि जैसा कि ऊपर बताया गया मेहमानों को बताया जा सके कि उनके अपने कमरों में जाने का समय हो गया है.
(Savoy Hotel Mussoorie) परम्परा यह भी थी कि इसके दो घंटे बाद ‘छोटा हाजिरी’ परोसी जाती थी जिसमें चाय, एक केला और दो बिस्कुट दिए जाते.

सेवॉय का सुनहरा दौर चल रहा था जब 1911 में यहाँ लखनऊ से किन्हीं मिस फ्रांसेस गार्नेट-ओर्मे का आगमन हुआ. परामनोविज्ञान और तंत्र-मन्त्र की विशेषज्ञ इस महिला के साथ उनकी एक दोस्त एवा माउंटस्टीफन भी थीं. गार्नेट-ओर्मे के पति फ़ौजी अफसर थे जिनकी मृत्यु उनके विवाह के कुछ ही दिनों बाद हो गयी थी. यह महिला काफी हद तक सनकी थी और उसका मानना था कि वह भूत-प्रेतों के संसार में विचरण करती है. एवा माउंटस्टीफन जल्दी ही वापस लखनऊ चली गईं और फिर वहां से झांसी. इसके कुछ ही दिनों के बाद मिस फ्रांसेस गार्नेट-ओर्मे अपने कमरे में मृत पाई गईं. उनका दरवाज़ा अन्दर से बंद था. ऑटोप्सी से पता चला कि उसकी मौत जहर से हुई थी. पुलिस ने इसे आत्महत्या मानने से इनकार करते हुए ह्त्या का मुक़दमा दर्ज किया. सारा शहर इस घटना की सनसनी में लबरेज़ था जब कुछ ही महीनों के बाद मिस फ्रांसेस गार्नेट-ओर्मे के डाक्टर की भी जहर दिए जाने मृत्यु हो गयी.

अनेक तरह की खोजबीन के बाद मनोचिकित्सक-खोजियों ने पुलिस से कहा कि गार्नेट-ओर्मे की हत्या एवा माउंटस्टीफन ने की थी. घटना के काल्पनिक ब्यौरों में जादू, टोने और तंत्र-मन्त्र के सनसनीखेज विवरण थे. एवा माउंटस्टीफन को गिरफ्तार कर उस पर मुकदमा चलाया गया लेकिन इलाहाबद के उच्च न्यायालय ने सबूतों की अनुपस्थिति में एवा माउंटस्टीफन को बरी कर दिया.
(Savoy Hotel Mussoorie) यह एक तरह का परफेक्ट मर्डर था. जज ने अपने निर्णय में कहा कि संभवतः अपराधी का पता कभी नहीं लग सकेगा. मामले में एक और अपील इस बुनियाद पर की गयी कि मृतक महिला काफी धनवान थी लेकिन इस एंगल से भी कुछ ख़ास पता न चल सका. यह अपने आप में एक अनसुलझी मर्डर मिस्ट्री थी जिसे अपनी किताब का विषय बनाने के लिए आर्थर कॉनन डॉयल से रुडयार्ड किपलिंग ने बाकायदा अनुरोध किया. डॉयल ने खुद तो वह किताब नहीं लिखी अलबत्ता इस केस के बारे में मशहूर लेखिका अगाथा क्रिस्टी को बतलाया जिन्हों ‘द मिस्टीरियस अफेयर्स एट स्टाइल्स’ नाम के अपने जासूसी उपन्यास की बुनियाद में इस घटना को रखा.
(Savoy Hotel Mussoorie)

1920 में छपी इस किताब के बाद रस्किन बांड ने भी एक कहानी इसी घटना को लेकर लिखी – ‘अ क्रिस्टल बॉल: अ मसूरी स्टोरी’. आज उक्त घटना को सौ से भी अधिक साल बीतने को आये लेकिन सेवॉय में रह चुके अनेक लोगों ने यहाँ के गलियारों और बॉलरूम्स में ओर्मे के प्रेत को देखे जाने की बातें की हैं. हॉरर फिल्मों की याद दिलाने वाली अनेक डरावनी लेकिन दिलचस्प कहानियां-किस्से सुनाने को मसूरी और आसपास के इलाकों में आज भी अनेक लोग मिल जायेंगे.
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