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3 Comments

  1. राजेंद्र

    आदरणीय रयाल जी , इधर बहुत दिनों बात सच में एक ताज़ा जीवंत हास्य-व्यंग्य पढ़ा | आपको धन्यवाद | आपकी प्रयाग पर लिखी पुस्तक भी पढ़ी | रोचक शैली और तेज़ नज़र | आजकल मित्रों को दी है वो पढने के लिए |

  2. Dhruv

    बहुत शानदार।
    इसको पढ़ने का आनंद मैं महसूस कर सकता हुँ लेकिन बता नहीं सकता. हाँ अग़ल-बगल के साथी ज़रूर एक दो दफ़ा पागल ज़रूर बोले, जो मेरा मन ही मन हँसना पचा नहीं पाए। असली मज़ा तब आया जब मैंने बारी बारी सबको पढ़ने के लिए दिया। ज़ाहिर है उनको भी कुछ उसी तरह की उपाधि मिली. लेकिन जब हमारी आँखें आपस में मिलती तो उसका आनंद हम ही जानते हैं।

  3. Dhruv

    इसको पढ़ने का आनंद मैं महसूस कर सकता हुँ लेकिन बता नहीं सकता. हाँ अग़ल-बगल के साथी ज़रूर एक दो दफ़ा पागल ज़रूर बोले, जो मेरा मन ही मन हँसना पचा नहीं पाए। असली मज़ा तब आया जब मैंने बारी बारी सबको पढ़ने के लिए दिया। ज़ाहिर है उनको भी कुछ उसी तरह की उपाधि मिली. लेकिन जब हमारी आँखें आपस में मिलती तो उसका आनंद हम ही जानते हैं।

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