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9 Comments

  1. Smita vajpayee

    सिक्किम में मैन ऐसी ही सरल सहृदयता को महसूस किया है ..

  2. Manoj चंद

    बहुत अच्छे लिखे हो भाई । मेरा और परिवार का भी ऐसा experience रहा है । एक बात की तरफ़ ध्यान देना ज़रूरी है cleanliness । स्वच्छता का culture

  3. आशुतोष

    निःसंदेह 60 से 100 रुपये में भोजन मिल जाता है एयर उसे आत्मीयता से भी परोसा जाता है, लेकिन शायद ऐसे छानियों में थोड़ा बर्तन या माल मटेरियल की साफ सफाई का ध्यान रखे तो उनमें यात्रीगण खाना खाने में हिचकेगें नही।
    मैन खुद कई बार अपने मित्रों को उन्ही छानियों में मैग्गी कहते देखा है, क्योंकि वो कम से कम साफ पानी मे उबाल कर बनाते है तो उनमें गंदगी होने का कम अंदेशा होता है।

  4. वीरेंद्र विष्ट

    भरपूर तृप्ति हो जाती है इन पहाड़ी ढाबों में खाना खा कर।

  5. Alok Uniyal

    Very true,Recently I spend 3days in Mukteshwar & travelled up to Jageshwar.
    We lived in Honestly & relished food direct from owners kitchen.
    In whole journey all food rates were reasonable less than city rates.

  6. Aditya Kumar Mamgain

    I recall my experience in such pahadi shabad in Chopta and Trijuginarayan. Quite satisfying experience.

  7. चन्द्र शेखर लिंगवाल

    तीन धारा का खाना और वो हरा निम्बू पानी, बयासी के परांठे और आलू के गुटके, हल्द्वानी पांडे जी की मैगी और नैनीताल जाते हुए मीट भात ,, सब बढ़िया ।।
    बेहतरीन लेख।

  8. Ranu

    पिछले तीन साल में दो बार हिमाचल और एक बार उत्तराखंड जा चुके हैं । उनके खिलाने का तरीका इतना स्नेह भरा होता है कि आप एक की जगह चार रोटी खा कर उठते हैं। चंबा के रास्ते में एक मामे दा ढाबा पड़ता है।
    उनका धाम इतना स्वाद था कि आज भी याद है

  9. Dr Girish Kumar

    I lived in remote block okhalkanda in nainital and remote block Narendra Nagar in tehri from yr 1983 to 1988 during govt service,doctor.still remember those hpy days and enjoyed food etc of thease dabbas,really people are very much simple and honest.still I went nainital many times.

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