कोनाना संकट की इस घड़ी में हरेला सोसायटी
पिथौरागढ़ के वॉलिंटियर्स अपने घरों से निकाले भुखमरी की स्थिति में पहुंच चुके लोगों की मदद कर रहे हैं. सोसायटी द्वारा पिछले एक हफ्ते से लोगों को साबुत खाना बांटा जा रहा है. करोना संक्रमण से खुद को और दूसरों को बचाने के लिए टीम द्वार एक कड़े प्रोटोकॉल का अनुपालन किया जा रहा है, जिसमें फील्ड टीम द्वारा खुद को सेल्फ इसोलेशन मे रखना, प्लास्टिक पैकड चीजों को सेल्फ सेनीटाइज़ होने के लिए तीन दिनों के लिए अलग रखना, चीजों को साबुन के पानी से डिसइनफेक्ट करना और समान बांटने मे शामिल वाहन का रोज सेनीटाइज़ करना शामिल है. Purple Cube

टीम के सदस्यों ने खुद के लिए भी पी.पी.ई. सूट, चश्मों, दस्तानों आदि का भी प्रबंध किया है, जिसमें बाहर जाते समय उनका सिर से लेकर पैर तक ढका रहता है. बांटी जाने वाली चीजों को बांटते समय रखी जाने वाली सावधानियों और साफ सफाई के नियमों का कड़ाई से पालन करने के बावजूद भी टीम के सदस्य चीजों के ढंग से सेनीटाइज़ होने को लेकर आश्वस्त नहीं हो पा रहे थे और इसी आशंका और आवश्यकता के चलते हैं टीम के वॉलंटियर और साथ काम कर रहे वैज्ञानिकों की सलाह और टेक्नीशियन टीम की मदद से हरेला सोसाइटी ने बना डाला – पर्पल क्यूब.

इस बॉक्स को बनाने से पहले टीम ने अलग-अलग रसायनों जैसे हैड्रोजन-पराक्साइड, ब्लीच, सोडियम हाइपोक्लोराइट, इथेनॉल आदि से चीजों को सेनीटाइज़ करने कोशिश की. लेकिन लाक डाउन के चलते इनमें से अधिकांश रसायन या तो उपलब्ध नहीं थे या फिर इनके प्रयोग करने के तरीकों और प्रभावों में संशय की स्थिति बनी रही. ऐसे में टीम के कुछ पुरानी आर. ओ. मशीनों और यू.वी. टूबस से ये मशीन बना डाली, जिससे वो अब अपने संसाधनों और वितरण सामग्री को किटाणु विहीन कर रहे हैं.
यह मशीन कैसे काम करती है?
ये मशीन यू.वी. विकरण और इसके किटाणुओं पर होने वाले प्रभाव के नियम पर काम करती है. सौर विकिरण के स्पेक्ट्रम का एक भाग यू.वी. कहलाता है जिसे पराबैगनी किरणे भी कहते हैं. पराबैगनी किरणों का भी यू.वी. – सी (UV-C) भाग जब किसी विसाणु के संपर्क में आता है, तो यह उसके DNA/RNA को नुकसान पहुंचाता है, जिससे वह अपनी संख्या नहीं बड़ा पाते और इस तरह से यूवी लाइट्स बैक्टीरिया, वायरस, मोल्ड्स आदि को खत्म कर देती हैं.
क्या इस तकनीक का प्रयोग करोना से लड़ने के लिए भी संभव है?
हरेला टीम ने अपनी शुरुवाती शोध में पाया कि इंग्लैंड में इसी तकनीक पर आधारित कुछ कंपनियां वहां के हॉस्पिटलों को अपनी सेवाएं दे रही हैं. चीन में भी बसों को UV विकरण से जगमगाती टनल से गुजारा जाता है, वहां रोबोट चीजों जैसे करेंसी नोटों आदि को यूवी लैंप से ही कीटाणु विहीन कर रहे हैं. Purple Cube
अस्पतालों के कमरों को इस तकनीक के माध्यम से विषाणुविहीन किया जा सकता है. प्रक्रिया के दौरान कमरे में हवा का सरकुलेशन बना रहना चाहिए जिससे कि विषाणु UV लाइट्स के संपर्क में आए और मारे जाएं. Purple Cube
क्या इस तकनीक के कुछ नुकसान भी हैं?
जैसे की बताया जा चुका है, कि ये किरणे सौर विकिरण का हिस्सा होती हैं , जो कि खतरनाक होती हैं. सूर्य से निकली इन किरणों का अधिकांश भाग ओजोन परत द्वारा रोक लिया जाता है इन किरणों के प्रभाव से त्वचा कैंसर जैसे रोग भी होते हैं. इस तकनीक का प्रयोग सिर्फ निर्जीव वस्तुओं को किटाणु विहीन करने के लिए किया जाना चाहिए, यदि हाथों को इससे साफ करने की कोशिश की जाए तो यह बेहद खतरनाक है, इससे कैंसर होने का खतरा है. साथ ही साथ नंगी आंखों से इन किरणों को देखने से आंखें खराब हो सकती हैं.
हमारे देश में जहां कोरोना से लड़ने में प्रयुक्त होने वाले जरूरी संसाधनों और सैनिटाइजिंग केमिकल की मात्रा में भारी कमी देखने को मिली है, वहां इस तकनीक का सहारा लिया जा सकता है. हमारी सरकारों को चाहिए कि वे जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं जैसे एंबुलेंस, हॉस्पिटल के कमरो, वेंतिलेटर रूम्स, हॉस्पिटल स्टाफ रूम्स आदि स्थानों को इस तकनीक के माध्यम से सेनीटाइज़ करें. साथ ही साथ पी.पी.ई. और ऐसे उपकरण जो कि संख्या में कम हैं, उन्हें इस तकनीक से विसाणुविहीन कर दोबारा प्रयोग में लाया जा सकता है. Purple Cube
इस तकनीक से संबंधित लिंक :
Ultraviolet light can kill the novel coronavirus – COVID-19
https://www.bbc.com/future/article/20200327-can-you-kill-coronavirus-with-uv-light
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