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1 Comments

  1. Abhay

    पहले और आज की स्कूली शिक्षा पद्धति में उभयनिष्ठ गुण/अवगुण ( जो भी मान लें) यही था/है कि, चिह्नों पर आधारित ज्ञान को , बच्चों की ग्राह्यता कम होने के कारण, उन्हें रटा रटा कर उनके मनोमस्तिष्क में भरा जाता है। तदुपरांत, पुष्ट होने के लिए, उस बलारोपित ज्ञान को बच्चों की बढ़ती हुई उम्र के ऊपर छोड़ दिया जाता था/है। दुख केवल उन क्षणों का होता था/है, जब बच्चों की दुर्बल और अनुभव रहित बुद्धि के लिए गणित के सामान्य तर्काधारित प्रश्न हल करना (और अन्य विषयों के तर्कपूर्ण उत्तर लिखना), उनकी उम्र के लिहाज़ से बहुत बड़ी चुनौती ‌‌‌बन जाता था/है।
    इस समस्या की काट आजतक हमारे पीजी और पीएचडी डिग्रीधारी गुरुजन/शिक्षाधिकारी नहीं निकाल सके हैं, क्यूंकि बच्चों, और विशेषकर छोटे बच्चों द्वारा समस्याओं के उत्तरों का प्रस्तुतीकरण और इनका मूल्यांकन, गुरुओं से लेकर अधिकारियों तक, सबके लिए, चिह्न/लेखन आधारित मूल्यांकन पद्धति ही है, आखिर बच्चों को बड़ा होकर लंबी चौड़ी फाईल लिखने योग्य बाबू तो बनाना ही है 😊😊

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