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4 Comments

  1. विरेन्द्र

    पहाड़,परिवार और पहाड़ी महिलाओं की जीवनशैली पर लिखा ईस लेख ने , शहर का सारा नशा उतार दिया , लेखक और काफल ट्री टीम को बहुत बहुत धन्यबाद

  2. कृपाल Kathayat

    काफल ट्री के माध्यम से शिव प्रसाद जोशी जी का पहाड़ी औरतों की जीवन शैली के ऊपर लेख बहुत ही मार्मिक व झकझोरने वाला है। पहाड़ी औरतों का परिवार के प्रति
    त्याग व समर्पण की भावना सचमुच तारीफ के काबिल है।
    एक समय था जब दूर दराज से पानी लाना, जानर में आता पीसना, दूर खेतों में गोबर ढोना, जंगल से लकड़ियों सिर पर लाना, गुड़ाई करना, यहां तक बच्चे होने के तुरंत खेतों में काम करना तथा इन दिनों में भी ठीक से खाना न देना, कहते थे ये खाओगी तो बच्चे को लाग जाएगा। कभी कभी बच्चे खेतों में ही काम करते हुए पैदा है जाते थे।
    कभी कभी ऐसा भी होता था यदि कोई भारी सामान कोई नहीं उठा पाता था तो सब कहते थे रहने दो औरतें ले जाएंगे।
    लेकिन आज काफी सुविधाएं हो चुकी है परन्तु मेडिकल फैसिलिटी का अभाव आज भी नजर आता है।
    जोशी जी से उम्मीद करता हूं कि मेडिकल फैसिलिटी व रोजगार के संसाधनों के बारे में भी सरकार का ध्यान आकर्षित करने की कृपा करें।
    आपके लेख के लिए बहुत बहत धन्यवाद।

  3. Anuj

    आपने पहाड़ी नारी को पृष्ठभूमि में रखकर जो रनिंग कमेंट्री की है वह ह्रदयस्पर्शी और वास्तविक जीवन का स्वयं अनुभव किया गया पर्याय ही है। लेखनी के आप जैसे साधकों से इस प्रकार का साक्षात्कार होना भी हम जैसे ज्ञानविहीन पाठकों के लिए कांन्स और अकैडमी अवॉर्ड ही है। साधुवाद।

  4. शोभा पाठक

    मैं बचपन से शिवानी जी की कहानियॉ पढ़ती रही हूँ और बिना उत्तराखंड गए मैं वहॉ की कठिन जीवनशैली से परिचित हूँ पर इस लेख को पढ़कर मेरे रौंगटे खड़े हो गए काश इनके जीवन में भी क्रांति कारी परिवर्तन आजाये

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