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3 Comments

  1. Kamal lakhera

    यह विवाद निपटाने का सबसे घटिया तरीका है । इससे समस्या और उलझेगी ।

  2. गोविन्द गोपाल

    ये बहुत दुखद है . हाथ चलाने का अधिकार किसने दिया ? ये मोब लिंचिंग के लिए जनता को उकसाने जैसा हो सकता है . अभियंताओं के साथ ऐसा व्यवहार भला कैसे एक सभ्य समाज में सभ्य व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है ?? क्या न्यायालय के संज्ञान लेने की स्तिथि नहीं है ? यदि कोई कर्मचारी काम में लापरवाही करता है तो न्यायालय के रास्ते खुले हैं उस दण्डित करने के. इस लोकतंत्र में ,हम हर विधान सभा क्षेत्र में तालीबानी या नक्सली न्याय दंड व्यवस्था स्थापित हरगिज नहीं कर सकते . ये व्यवहार हमें उत्तराखंड में अच्छे चिकित्सकों और इंजीनियरों के नहीं टिकने का राज उद्घाटित करता है . मुझे नहीं लगता है कि पार्टी और मुख्य मंत्री महोदय दोनों को ये ढंग रास आया होगा . अब लीपा-पोती हो सकती है पर अच्छे डॉक्टरों , इंजीनीयरों और लेखकों के भरोसे को आप वापिस ला नहीं सकते . ऐसे ही दबंगई व्यवहार ने कई स्थानों में , पुलिस और अन्य अधिकारियों को भय में भीगी बिल्ली वाली मुद्रा में काम करने को विवश किया है जिससे निष्ठावान अधिकारी काम नहीं कर पा रहे है . उनकी परफॉरमेंस प्रभावित हो रही है .और जनता सफर कर रही है .. क्या ये उचित है ? क्या हम प्रतिनिधि होकर एक प्रेरक आचरण प्रस्तुत नहीं कर सकते ? आज़ादी के सत्तर साल गुजरने के बाद भी ?

  3. Jitendra chauhan

    बहुत अच्छा किया विधायक जी ने गावं कि जनता का साथ दे के ये होता है सच्चा सेवक अपनी इमेज कि परवाह न करते हुए भी सही किया

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