धारचूला की रं सभ्यता का विस्तृत परिचय – 3
-अशोक पाण्डे
1884 में पहली बार छपे अपने ‘द हिमालयन गजेटियर’ में एडविन थॉमस एटकिंसन ने बूदी गाँव का परिचय देते हुए लिखा है – “बूदी गाँव समुद्र की सतह से 9070 फीट की ऊंचाई पर पलंगाड़ी नदी की धारा के दाएं किनारे पर उस बिंदु के ठीक ऊपर बसा हुआ है जहाँ काली नदी के साथ उसका संगम होता है. बूदी के ठीक ऊपर, उत्तर-पश्चिम के पहाड़ी क्षेत्र से लगी हुई एक तीखी ऊंचाई वाली पहाड़ी है जो पूरी घाटी के आरपार पसरी हुई है जिसके कारण नदी के बहाव के लिए एक बेहद संकरा रास्ता बचता है. करीब 1750 फीट की मुश्किल चढ़ाई के बाद चेतू-बिनायक (अब छियालेख) पहुँच कर आप ऊपरी व्यांस में प्रवेश करते हैं.”
बुदियालों, रायपाओं और लामाओं का घर बूदी गाँव इस घाटी के रं गाँवों में सबसे कम ऊंचाई पर अवस्थित है. यहां कुमाऊँ मंडल विकास निगम का एक गेस्टहाउस है जहाँ से हिमालय की महान अपी (अन्नपूर्णा) चोटी का शानदार नज़ारा देखने को मिलता है. इस गेस्टहाउस से कोई 500 मीटर की दूरी पर मुख्य बूदी गाँव है.
रं समुदाय का सामाजिक तानाबाना वंशावली पर आधारित एक शताब्दियों पुरानी जटिल पद्धति के गिर्द बुना गया है जिसमें एक पूर्वज के वंशज एक विशिष्ट समूह का हिस्सा माने जाते हैं जिसे ‘राठ’ कहा जाता है. गाँव के एक विशिष्ट हिस्से में एक विशेष राठ के लोग रहते हैं और इस हिस्से को ‘सौरा’ कहा जाता है.
बूदी गाँव की मुख्य राठों में लामा, रैच्यंग और ख्वेनच्यंग प्रमुख हैं. लामा राठ की एक और उपशाखा है – गुन्दकच्यंग. रैच्यंग राठ की उपशाखाओं में शामिल हैं – पीकूरैच्यंग, पंग्पूरैच्यंग और जेखूरैच्यंग.
रं सभ्यता का धार्मिक जीवन और तत्व-विज्ञान अनेक देवी-देवताओं के इर्द-गिर्द घूमता है जिन्हें सदियों से चले आ रहे धार्मिक-सामाजिक विश्वासों के आधार पर विभिन्न गुणों और शक्तियों से सुसज्जित माना जाता है. कुछ देवता सीधे सीधे प्रकृति और उसकी शक्तियों से जुड़े हुए हैं जबकि अनेक अन्य देवी-देवताओं के अस्तित्व के साथ मिथकीय धारणाएं संलग्न हैं. एक शानदार वाचिक-परम्परा के माध्यम से ये धारणाएं पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे ले जाई जाती रही हैं. संपर्कों और विश्वास का यह ऐसा सामाजिक समुच्चय है कि सामाजिक परम्पराओं और धार्मिक विश्वास के बीच अंतर कर सकना मुश्किल हो जाता है. जीवन की धारा की दिशा निर्धारित करने वाला विश्वास और जीवन का यह मज़बूत और उत्तेजक मिश्रण समूची रं घाटियों में हर जगह महसूस किया और देखा जा सकता है.
चार्ल्स ए. शेरिंग ने लिखा है – “सै-थान या ईश्वर का स्थान, एक गज लम्बाई और उतनी ही चौड़ाई और एक य दो गज की ऊंचाई वाला एक छोटा सा चैंबर होता है, जिसके भीतर एक सफ़ेद पत्थर रखा होता है. इसके ऊपर एक पेड़ की शाखा होती है जिसे सफ़ेद कपड़े की पतली पट्टियों (धजा) से सजाया गया होता है जो हवा में फरफर करती रहती हैं. अलबत्ता ज्यादातर जगहों पर कोई मन्दिर जैसा नहीं होता बल्कि एक साधारण पत्थर भर होता है जिसकी बगल में धरती पर एक प्रार्थना-स्तम्भ अथवा दरच्यो (पेड़ का कटा हुआ तना जिसके ऊपर की कुछ शाखाएं छोड़ दी जाती हैं) स्थापित रहता है जिसमें बांधी गयी धजाएं लटकी रहती हैं.”
गाँव में मनाये जाने वाले सबसे प्रमुख त्यौहारों में ह्या गबला-पूजा, किर्जी (जिसे चौंदास घाटी में कंडाली कहा जाता है). व्यास मेला, नबू-साम और बुड़ानी प्रमुख हैं. बूदी गाँव के निवासियों के लिए प्रतापी त्यिंद लामा महानतम पितर और गाँव के संरक्षक हैं जिनके जीवन और कर्मों को लेकर प्रचलित असंख्य जनप्रिय किस्सों, कहानियों और मिथकों का सम्बन्ध अनेक स्थानों, दिनों, लोगों और गाँवों से जुड़ा हुआ है.
त्यिंद लामा का मिथक:
माना जाता है कि त्यिंद लामा का जन्म लामारी नामक छोटी सी बसासत में एक अंडे से हुआ था जिसे एक गरुड़ ने सेया था. उन्हें एक शेरनी ने अपना दूध पिलाकर बड़ा किया था. जाहिर है त्यिंद लामा के मानवीय माता-पिता भी थे.
एक बार जब त्यिंद लामा छोटे बच्चे थे, वे अपने नन्हें से पालने से गायब हो गए. चिंतित होकर उनके माता-पिता और सम्बन्धियों ने उनकी खोज शुरू कर दी. त्यिंद लामा को छिलो नाम का पांसे का खेल खेलना अच्छा लगता था. उनके पास यह शक्ति थी कि वे अपनी देह को कहीं भी पहुंचा सकते थे और छिलो खेलने के लिए अक्सर छिन्दू या गर्ब्यांग गाँव पहुँच जाते थे. गर्ब्यांग गाँव की एक महिला उनकी देहयष्टि देखकर आकर्षित हो गयी. एक दिन उसने देखा कि बालक त्यिंद लामा अकेले छिन्दू गाँव के घराट के नज़दीक छिलो खेल रहे थे. बालक की देह पर कोई भी वस्त्र नहीं था. सत्य यह था कि त्यिंद लामा देवताओं और आत्माओं के साथ छिलो खेला करते थे जिन्हें साधारण मनुष्यों द्वारा नहीं देखा जा सकता था. अगली सुबह उस महिला ने अपने घर पर पिछली शाम देखे गए दृश्य के बारे में बतलाया. कुछ ग्रामीण महिला द्वारा बताये गए स्थान पर गए. ग्रामीणों ने बालक को वहां खड़ा देखा. जब बालक ने ग्रामीणों को अपनी तरफ आता देखा वह दोस्ताना तरीके से मुस्कराता हुआ उड़ा और बादलों में अलोप हो गया. तब से त्यिंद लामा को फंग्त लामा (उड़ने वाला लामा) भी कहा जाता है. जिस जगह से त्यिंद लामा ने उड़ान भरी थी वह आज भी एक स्तम्भ की शक्ल में मौजूद है जबकि उसके आसपास की धरती काफी गहरे धंस चुकी है.
जब उस महिला ने बालक के जादुई रूप से अदृश्य हो जाने के बारे में सुना तो उसे विश्वास हो गया कि यह वही बालक है जो उसके स्वप्नों में आता रहता था. ग्रामीणों ने उस स्त्री को अनेक तरह के लालच दिए कि यदि वह बालक त्यिंद लामा के बारे में कुछ बता देगी तो उसे काफी सारे इनामात दिए जाएँगे लेकिन महिला ने मना कर दिया. महिला ने मांग की कि गाँव की जल और समृद्धि की देवी न्युंगटांग को उसके हवाले कर दिया जाए. महिला की बात मान ली गयी और ऐसा होते ही ग्रामीणों ने देखा कि बालक त्यिंद लामा महिला द्वारा बताये गए स्थान पर ही खड़े थे.
अपने जीवन में त्यिंद लामा ने पूरे इलाके और ख़ास तौर पर बूदी गाँव में परोपकार के अनेक कार्य किये जिससे उन्हें अपार ख्याति और सम्मान की प्राप्ति हुई. वे शारीरिक रूप से भी बलशाली थे. इसके अलावा वे बहुत बुद्धिमान और चतुर भी थे और उन्होंने अपना जीवन रं लोगों के उत्थान में लगाया.
उनकी शक्ति का पहला प्रमाण सिमखोला में देखा जा सकता है जहाँ उन्होंने गाला बगेल नाम के एक दुष्ट राक्षस का वध किया था. व्यांस घाटी के लखनपुर नामका स्थान के ठीक सामने काली नदी के पार नेपाल में तम्पा झरने के पीछे एक गुफा में रहने वाले तम्पा खुची श्यिना नामक एक अन्य दैत्य का ज़िक्र एक दूसरे मिथक में आता है. हमेशा भूखा रहने वाला तम्पा खुची श्यिना क्षेत्र के चरवाहों और ग्रामीणों के लिए आतंक का पर्याय बन चुका था. बूदी के बुजुर्गों से दिलचस्प विवरणों के साथ वह कथा सुनी जा सकती है जिसमें त्यिंद लामा ने अपनी चालाकी से तम्पा खुची श्यिना को एक गर्म लाल पत्थर निगलने को विवश किया जिसके बाद वह रं-देश छोड़ कर चला गया.
त्यिंद लामा के बारे में एक और कथा उनके छिलो खेलने के शौक को लेकर है. बूदी गाँव के निकट एक स्थान पर थाकोंग नाम का एक प्रेत (रं भाषा में ‘श्यिना’) अक्सर त्यिंद लामा के साथ छिलो खेलने आया करता था. दोनों महारथी खिलाड़ी थे और उनकी बाजियां लम्बी चला करती थीं. उनके बैठने के निशान क्षेत्र की अनेक चट्टानों पर आज भी देखे जा सकते हैं. उसी स्थान पर एक सुन्दर पत्थर भी दिखाई देता है. मानते हैं कि दोनों इसी पत्थर पर बैठकर खेला करते थे. चूंकि त्यिंद लामा श्यिना से अधिक बलशाली थे, यह पत्थर उनके भार के कारण एक तरफ को अधिक धंसा हुआ है.
एक और कथा के अनुसार थाकोंग और त्यिंद लामा के बेटे के बीच हुई कुश्ती में थाकोंग की करारी हार हुई जिसके बाद उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने सार्वजनिक रूप से माफी माँगी.
एक बार त्यिंद लामा को दारमा घाटी से न्यौता आया. वहां के विख्यात लामा दारमा लामा ने उन्हें बुलाया था. जब त्यिंद लामा वहां खाना खाने को आसन ग्रहण कर ही रहे थे दारमा लामा ने उनसे आग्रह किया कि वे भोजन से पहले नज़दीक में स्थित जलस्रोत पर जाकर हाथ धो लें. जब त्यिंद लामा जलस्रोत पर पहुंचे तो उसका जल ठोस बर्फ में तब्दील हो गया. दरअसल दारमा लामा ने अपने मेहमान को अपनी शक्ति दिखने के उद्देश्य से न सिर्फ उस जलस्रोत के बल्कि आसपास के इलाके के सभी जलस्रोतों और नदियों-धारों के पानी को बर्फ में बदल दिया था. त्यिंद लामा अपने हाथ न ढो सके और इस तरह उनकी एक छोटी सी पराजय हुई. लेकिन जब वे वापस आ आ रहे थे उन्होंने समूची दारमा घाटी का पानी अपने साथ लिया उसे ले जाकर बूदी गाँव के पास एक स्थान पर छोड़ दिया. उस स्थान पर पानी का एक सोता फूट पड़ा जिसे आज भी बूदी गाँव के लोग दारमा ची नासो के नाम से संबोधित करते हैं.
इन्हीं दो खलीफा लामाओं के बारे में एक और किस्सा चलता है जिसके मुताबिक़ दारमा लामा ने अपने शक्ति प्रदर्शन के तौर पर त्यिंद लामा के पास अपनी एक नौकरानी को सन्देश-वाहिका बनाकर भेजा. महिला त्यिंद लामा को उस पुल पर मिली जो छिन्दू और छांगरू गाँवों को जोड़ता था. यह विशिष्ट सन्देश-वाहिका अपने साथ बांस की बनी टोकरी में काली नदी का पानी लेकर आयी थी. बदले में दारमा लामा को वैसा ही शक्तिशाली सन्देश भेजने के उद्देश्य से त्यिंद लामा ने एक सूखे अखरोट के छिलके को लेकर नज़दीक की ठोस चट्टान पर एक चोट की. इस चट्टान से भी पानी का सोता बह निकला. इस जलस्रोत को कुरे-ती कहा जाता है और लोग मानते हैं कि इसके जल में अनेक औषधीय गुण पाए जाते हैं.
बूदी गाँव के लोगों की स्मृतियाँ त्यिंद लामा की अनेक ऐसी कथाओं से भरी हुई हैं. त्यिंद लामा को ईश्वरीय शक्तियां मिली हुई थीं और कुटी गाँव के एक और महान लामा शौक्पो लामा के साथ उनकी मित्रता के अनेक किस्से पूरी घाटी में सुने-सुनाये जाते हैं.
त्यिंद लामा के वर्तमान वंशज खुशाल लामा आज भी अपनी आध्यात्मिक शक्तियों से बूदी गाँव के लोगों के कल्याण में रत हैं.
(जारी)
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