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6 Comments

  1. Geeta

    Da it’s really awsm blog written by youuu

  2. Chand Santosh

    ये वाकई विमर्श का विषय है धामी जी …आपने एक अत्यंत ही सामान्य परंतु महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है??

  3. अरविन्द द्विवेदी

    काफ़ी अच्छा लगा आपका लिखा हुआ लेख भगवान सर… 🙏

  4. Zafar aalam

    सरकार के कहने भर से या मास्साब के लठ के बल पर कोई मातृभाषा नही बन सकती यह नैसर्गिक होती हैं जो उसके घर क्षेत्र परिवेश मेरे बोली सुनी समझी जाती हैं

  5. विकास गुलेरिया

    धामी जी, बहुत सुंदर तरीके से आप ने पहाड़ी भाषाओं के साथ हुए सौतेले पन को उजागर किया. ये हम पहाड़ियों का दुर्भाग्य है की हमें बहुत देर से पता चलता है की जिसे हम अपनी मातृ भाषा समझते है वो तो असल मै हमारी भाषा नहीं बल्कि सिखाई हुई है.
    मै हिमाचल से हूं पर आप के इस लेख से अपने आप को जुड़ा पाता हूं. पहाड़ की बहुत सी बातें समान ही है।

  6. PRAKASH G

    AAPNE MATRABHASHA KE UPAR BAHUT ACHHA LEKH LIKHA HAI LEKIN NISHULK EVAM ANIVARYA SHIKSHA KA ADHIKAR 2009, SHIKSHA MATRABHASHA ME DI JANI CHAIYE AISA ULLEKH NAHI HAI

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