हल्द्वानी से भवाली होते हुए एक पक्की सड़क श्यामखेत से गुजरते हुए रामगढ़ के लिए चली जाती है. बहुत कम शोर और ट्रैफिक वाली इस सुनसान सड़क पर श्यामखेत के चाय बागानों को पीछे छोड़ने के कुछ समय बाद हिमालय आपका बांया हाथ थाम लेता है और आप घने जंगलों के मोहपाश में बंध जाते हैं. ताजा मौसमी फलों, सौंधी मिट्टी और फूलों की ख़ुशबू को लपेटे ताजा आक्सीजन आपके फेफड़ों में भरती जाती है. (Diwali Aipan Thal by Hemlata)
गागर, मल्ला-तल्ला रामगढ़, शीतला, सतखोल होते हुए यह सड़क अल्मोड़ा के लिए चल पड़ती है. सतखोल पार करते ही इस रास्ते पर एक गुमनाम सा गांव पड़ता है — सतोली. आधुनिकीकरण और विकास का पहिया यहां चढ़ते हांफ जाता है. ग्राम सभा सतोली में लगभग 70 परिवारों के घर हैं. बीसेक परिवारों के पलायन कर जाने से उनके घर मकानों में तब्दील हो गए हैं और खंडहर बनने की बाट जोह रहे हैं. कोई दसेक परिवारों में से एकाध सरकारी नौकरी में है बाकि घर खेती, बागवानी, पशुपालन और अनियमित मजदूरी कि दम पर अपनी गाड़ी खींचते हैं.
सतोली में एक घर हेमलता कबडवाल उर्फ़ हिमानी का भी है. विराट हिमालय के सामने बसे इस छोटे से पहाड़ी गांव के छोटे से घर में रहने वाली हेमलता के सपने बहुत बड़े हैं और उनको पूरा करने का दृढ निश्चय भी. अपने बुलंद हौसलों के साथ रंग और ब्रश थामे हेमलता उत्तराखण्ड की पारंपरिक चित्रकला का भविष्य संवारने का काम कर रही हैं. अब तक ऐपण चित्रकला व अन्य राज्यों की लोककलाओं के सम्मिश्रण से हेमलता ढेरों कलाकृतियाँ तैयार कर चुकी हेमलता इस समय दिवाली की तैयारी में व्यस्त हैं.

इस दिवाली के लिए सतोल की हेमलता के पिटारे में है ऐपण थाल. इस पूजा थाल के साथ एक लोटा, दिए और महकती मोमबत्तियां भी हैं. पूजा थाल को कुमाऊं की पारंपरिक चित्रकला ऐपण के साथ बिहार की मधुबनी चित्रकला मधुबनी के फ्यूजन से तैयार किया गया है. थाली, लोटे, दिये और मोमबत्ती के इस सैट में दोनों लोकचित्रकलाओं की बारीकियों को बखूबी उकेरा गया है. लोककला के रसिया हेमलता के इस प्रयोग को बहुत सराह भी रहे हैं. हिमानी के 2 हाथ इन्हें तैयार करने में लगे हैं तो कई आंखें इन्हें पाना चाहती हैं.

इस प्रतिक्रिया से हेमलता बहुत उत्साहित है. उन्हें लगता है कि अपने शौक और जुनून को जीवन का मकसद बना लेने का उनका फैसला गलत साबित नहीं हुआ. कुमाऊनी कला के चाहने वालों की इस अभूतपूर्व प्रतिक्रिया की वजह है हेमलता द्वारा कलात्मक बारीकियों के साथ बनाये गए आकर्षक उत्पाद.

हिमानी ऐपण कला के नाम पर कुछ भी लाल-सफेद पोत देने के बजाय कला की बारीकियों को ज्यादा महत्त्व देती हैं. उनके उत्पादों की सुघड़ता व कलात्मकता मन मोह लेती है. लोककला की उनकी गहरी समझ और हुनर उन्हें और कलाकारों से अलग खड़ा कर देता है. यही वजह है कि कम उम्र में ही हिमानी ने लोककला के क्षेत्र में अलग मुकाम हासिल किया है. उनके पास शहर-कस्बे से दूर होने की वजह से तमाम प्रचार माध्यमों से चर्चित हो पाने की सुहूलियत भी कम ही है. वे मुख्यधारा के मीडिया के लिए महत्वहीन गांव को अपनी कर्मभूमि बनाये हुए हैं. इसके बावजूद उनके काम की गूंज दूर-दराज महानगरों तक भी सुनाई देने लगी है.

एक गांव जिसकी एक तिहाई आबादी पलायन कर चुकी है वहां हेमलता ने लोककला के जरिये रोजगार की मिसाल कायम करने में जुटी हुई हैं. उन्होंने इसका जरिया भी कुमाऊं की पौराणिक लोककला को बनाया हुआ है. हेमलता जैसे युवा उत्तराखण्ड की पारंपरिक लोककला का भविष्य हैं और उजड़ने को विवश गावों की उम्मीद भी.

आप भी हेमलता से उनके फेसबुक पेज और इंस्टाग्राम अकाउंट के माध्यम से संपर्क कर उनका हौसला बढ़ा सकते हैं. उनके काम को सराह कर उन्हें प्रेरित कर सकते हैं कि वे अपनी मुहीम में जुटी रहें.
-सुधीर कुमार

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