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1 Comments

  1. गोविन्द गोपाल

    प्रकरण बहुत मार्मिक है और हिंसा के कृत्यों के परिणाम में कितनी भयावहता होती है इसे बताने का प्रयास करता है . लेकिन लेख के अवसान में लेखक किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होजाता है और जो सन्देश पाठक को मिलता , विशेष कर बच्चों के सुकोमल मन को , वह किसी केश वेणी की गाँठ से छूटे लट की तरह छिटक जाता है . और फिर पाठक भी अपने मन में बनते सृष्टि परक विचारों को भी छितरा देता है . और ये धनात्मक प्रवृति के पक्ष में नहीं जाता .

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