एक ज़माना था जब कादर खान को एक फिल्म लिखने के अमिताभ बच्चन से ज़्यादा पैसे मिलते थे. सत्तर और अस्सी के दशक में कादर खान के बिना किसी सुपर हिट फिल्म की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. दुर्भाग्य क... Read more
समूचा हिंदुस्तान नजर आता है ‘बावर्ची’ फिल्म में
बावर्ची (1972) विघटित होते पारिवारिक मूल्यों की पुनर्स्थापना को लेकर आई एक नए मिजाज की फिल्म थी. तब के दौर के हिसाब से यह फिल्म, एक बिल्कुल नये विषय को लेकर आई. ऋषि दा की फिल्मों के विषय आम... Read more
देश में बनी पहली गढ़वाली फिल्म थी ‘जग्वाल’
बृहस्पतिवार, 4 मई 1983 का दिन. दिल्ली का रफ़ी मार्ग सैकड़ों की भीड़ से अटा हुआ था. रफ़ी मार्ग में स्थित मावलंकर आडिटोरियम के बाहर लोगों में टिकट लेने को लेकर होड़ लगी थी. मावलंकर आडिटोरियम के बाह... Read more
सिनेमा: फिल्म निर्माण में एक सफल प्रयोग की कहानी
आज जब हम इंटरनेट पर जॉन अब्राहम के नाम से खोज शुरू करते हैं तो सबसे पहले 1972 में पैदा हुए केरल के बॉलीवुड़ी अभिनेता जॉन अब्राहम के बारे में जानकारी मिलती है. थोड़ी सी मशक्कत के बाद थोड़े पुरान... Read more
वन्स अगेन – फिल्म रिव्यू
किसी भी एहसास पर कला का प्रदर्शन बेहद कठिन काम है फिर अगर एहसास प्यार हो तो काम और कठिन हो जाता है. बालीवुड में प्यार को लेकर हर हफ्ते एक फिल्म बनती है लेकिन आप उंगलियों में उन फिल्मों को गि... Read more
सिनेमा: पांच मिनट में सत्रह देशों की दुनिया
एन वुड द्वारा 1984 में स्थापित टीवी कंपनी रैगडौल से सीख मिलती है कि एक अच्छा प्रोग्राम कैसे और कितनी मेहनत से बनाया जाता और फिर यह भी कि प्रोग्राम बनाने में रुपये पैसे के अलावा दिल भी लगाना... Read more
पीहू की कहानियाँ – 6
फ़िल्म की असली डायरेक्टर “पीहू” ही है पिछले कई दिनों से मैं इंटरव्यू दे रहा हूँ.एक सवाल सबसे ज़्यादा पूछा जा रहा है कि आपने एक दो साल की बच्ची को डायरेक्ट कैसे किया ? आज एकदम सही सही बताऊँ ?... Read more
पीहू की कहानियाँ – 5
मैडम अभी सो रही हैं मैडम को पॉटी आ गई है मैडम सुसु करने गई है मैडम का अभी मूड नहीं है मैडम को अभी डॉल से खेलना है मैडम ग़ुस्सा है मैडम रो रही है 33 दिन के शूट के दौरान योगेश जानी को इंतज़ार... Read more
बॉलीवुड में गम्भीर विषयों पर बनी ‘सिचुएशनल कॉमेडी’ फिल्मों में ‘पड़ोसन’, ‘चुपके चुपके’, ‘गोलमाल’, ‘जाने भी दो यारो’, ‘अंदाज अ... Read more
लगता है कि अच्छी फिल्मों का दौर फिर से लौट आया है. बॉलीवुड में तो अच्छी – अर्थपूर्ण फिल्में बन ही रही हैं, क्षेत्रीय सिनेमा, खासतौर से मराठी, भोजपुरी और दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी पिछ... Read more