अब सुनने को नहीं मिलते हैं पहाड़ के मेलों में ‘बैर’
वैरा जिसे बैर भी कहते हैं, इसका शाब्दिक अर्थ संघर्ष है जो गीत-युद्ध के रूप में गायकों के बीच होता है. इसमें एक पक्ष दूसरे को पराजित करने की चेष्टा करता है. अपने पक्ष का समर्थन और दूसरे पक्ष... Read more
बचपन में दशहरा द्वारपत्र बनाने की ख़ुशगवार याद
जब हम छोटी कक्षाओं के छात्र हुआ करते और बड़े भाई जो घर के मुखिया भी थे, पुरोहिती का कार्य करते थे. उस दौर में दशहरा द्वार पत्र मुद्रित रूप में नहीं हुआ करते थे, अगर होते भी होंगे तो बड़े महा... Read more
बच्चों की प्रतिभा बाल्यकाल में ही पहचान ली जाए तो उसे उचित प्रशिक्षण देकर तराशना आसान हो जाता है. बहुत सारे बच्चे जन्मजात प्रतिभासम्पन्न होते हैं. अधिकतर, अपेक्षित प्रशिक्षण और मंच के अभाव स... Read more
कोरोना का सत्कार
शीर्षक थोड़ा अटपटा है. धैर्य रखिए, पूरा पढ़ने के बाद समझ में आएगा. ‘अतिथि देवो भव:’ हमारी प्राचीन भारतीय परम्परा का सूत्र-वाक्य है. बचपन से हम सुनते आ रहे हैं कि अतिथि को ईश्वर का स्वरूप मान... Read more
किसी भाषा को कैसे बचाया जा सकता है? यह एक ऐसा सवाल है जिसके बड़े लम्बे चौड़े उत्तर दिये सकते हैं, कविता की जा सकती है. गोष्ठी की जा सकती है. सांस्कृतिक कार्यक्रम किये जा सकते हैं, उसके व्याक... Read more
केदारखंड के तल्ला नागपुर पट्टी के कान्दी गांव में प्राचीन भगवान कौलाजीत का मंदिर है. कौलाजीत एक प्राचीन ऋषि थे. इस मंदिर की प्राचीन काल से मान्यता है कि यहां सर्प दंश पीड़ित को कुछ समय के लि... Read more
अयोध्या का प्रश्न विधानसभा में 31 अगस्त, 1950 में उठा. इसमें मुख्य मुद्दे ज़िले का सांप्रदायिक वातावरण, 6 सितंबर 1950 को अक्षय ब्रह्मचारी का प्रस्तावित अनशन तथा 14 सितंबर, 1950 को अयोध्या मे... Read more
भगवत गीता के श्लोकों का कुमाऊंनी अनुवाद
भगवत गीता के श्लोकों का यह अनुवाद चारुचन्द्र पांडे द्वारा किया गया है. काफल ट्री में यह अनुवाद पुरवासी पत्रिका के 14वें अंक से साभार लिया गया है. (Kumaoni Translation of Bhagavad Gita) भौते... Read more
कुमाऊंनी लोक साहित्य में नारी का विरह
सामान्य जनों या आशुकवियों द्वारा मौखिक परम्परा के रुप में अभिव्यक्त साहित्य लोक साहित्य कहलाया. परिवेश के अनुसार उसकी अभिव्यक्ति विरह और मिलन दोनों रुपों में हुई है. नारी यों तो सृष्टि की वह... Read more
जहां जहां शिव आराध्य हैं वहां भैरव स्वयं ही आराध्य बन जाते हैं. बिना भैरव के दर्शन के भगवान शिव के दर्शन अधूरे हैं फिर वह काशी के विश्वनाथ हों या उज्जैन के महाकाल. आसितांग भैरव.(Kedarnath Bh... Read more